गौरतलब है विगत वर्ष प्रदेश सरकार ने हथियारों के लाइसेंस के सत्यापन के निर्देश दिए थे। जो कागजों पर ही सिमट कर रह गया। बिकरू कांड के बाद एसआईटी ने जांच शुरू की तो पुलिस के काले कारनामों की परत दर परत खुलने लगी। एसआईटी की जांच में सामने आया कि विकास दुबे के परिवार और सहयोगियों को 1992 से 2009 के बीच फर्जी स्टांप पर हथियार लाइसेंस दिए गए थे। लगभग दो दशकों तक चले इस फर्जीवाड़े की जानकारी किसी को नहीं हुई या फिर संबंधित विभाग जानकर अनजान बना रहा।
प्रदेश की योगी सरकार ने सितंबर 2019 में हथियार लाइसेंस के सत्यापन का आदेश दिया था। इसके लिए एएसपी, सिटी मजिस्ट्रेट, सीओ लाइन, रिजर्व इंस्पेक्टर आदि को समिति में शामिल किया गया। समिति की तरफ से सभी थानाध्यक्षों को निर्देशित किया गया था कि उनके यहां दर्ज हथियार लाइसेंस की जानकारी समिति को दे। इसके लिए बकायदा रोस्टर भी जारी किया गया था। लेकिन थानाध्यक्षों ने शासन की मंशा और समिति के निर्देशों को दरकिनार कर दिया। जिससे हथियारों के लाइसेंस का सत्यापन का निर्देश कागजों में ही सिमट कर रह गया। विकास दुबे द्वारा बिकरु कांड कराए जाने के बाद बैठाई गई एसआईटी की जांच में पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत से हुई अनियमितताएं सामने आ रही हैं।