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होलिका दहन के बाद घरों में ग्रामीण कैद, 18 गांवों में नहीं उड़ेगा रंग और गुलाल

locationकानपुरPublished: Mar 21, 2019 11:15:44 am

Submitted by:

Vinod Nigam

लगान के खिलाफ जमीदार ने किया था आंदोलन, अंग्रेजों ने उन्हें होलिका के दहन के बाइ किया था गिरफ्तार, ग्रामीणों के आंदोलन से झुकी सरकार फिर रंगपंचमी को उड़ा रंग-गुलाल।

villagers are not played colors in eighteen village of kanpur on holi

होलिका दहन के बाद घरों में ग्रामीण कैद, 18 गांवों में नहीं उड़ेगा रंग और गुलाल

कानपुर। देश भर में लोग होली पर्व बड़ी धूम-धाम के साथ माना रहे हैं। देरशाम होलिका दहन के बाद सुबह से शहर रंगों से सराबोर हो गया। पर कानपुर जिले में ऐसे 18 गांव ऐसे भी है, जहां पिछले 100 सालों से दोलिका दहन के बाद ग्रामीण अपने-अपने घरों के अंदर कैद हो जाते हैं और गलियां में पांच दिन तक सन्नाटा रहता है। रंगपंचमी के दिन सुबह महिलाओं और युवाओं की टोली सज-धल कर निकलती है और फिर सभी के चेहरे लाल-पीले और काले नजर आते हैं।

इसलिए नहीं मनाते होली
देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी। बिठूर से नानाराव पेशवा ने क्रसंति का बिगुल फूंक दि या था। कानपुर की जनता आजादी के लिए जंग-ए-मैदान में थी। इसी बीच 1917 को अंग्रेज कलेक्टर लुईस ने किसानों की आवाज को दबाने के लिए उन पर भारी-भरकम लगाम लगा दी। जिसके चलते वाजिदपुर के जमीदार जगन्नाथ ने आसपास के 18 गांवों के किसानों को बुलाया और चैपाल लगा लगान नहीं भरने का फरमान चुना दिया। गुस्साए अंग्रेजों ने होलिका दहन के बाद जगन्नाथ को गिरफ्तार कर लिया। इससे आक्रोशित होकर किसान व ग्रामीणों ने जोरदार आंदोलन किया और पर्व नहीं मानाने का ऐलान कर दिया। किसानों के उग्र प्रदर्शन को देख अंग्रेेज सरकार को झुकना पड़ा और होली दहन के पांचवें दिन जमीदार को छोड़ दिया। इससे खुश होकर ग्रामीणों ने जमकर रंग-गुलाल उड़ाया। उसी दिन से यहां पर पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा चली आ रही।

पूरे शहर में घूमेंगे रथ
जगन्नाथ के पौव व पूर्व विधायक राजकुमार ने बताया कि जैसे ही दादा गांव लौटे ग्रामीणों ने उन्हें उठा लिया। फिर बैलगाड़ी की व्यवस्था की गई। 18 गांव के सैकड़ों महिला, पुरूष, युवक और युवतियां बैलगाड़ी के पीछे-पीछे चल पड़े। जुलूस पूरे शहर में घूमा। हर गली-मोहल्ले में लोगों ने मिठाई खिलाई और क्रंातिकारियों को रंगों से सराबोर कर दिया। इसके बाद पिछले सौ सालों से रंगपंचमी के दिन 18 गांव के लोग एक जमा एकत्र होते हैं। यहां से रंग और गुलाल के साथ निकलते हैं। दिनभर होली खेलने के बाद शाम को गंगाघाट में जाकर स्नान कर अपने- अपने घरों को चले जाते हैं।

युवाओं के कंधे पर परम्परा
वाजिदपुर गांव के बुजुर्ग विशम्भर कुशवाहा बताते हैं कि हमारे पिताजी व गांव के अन्य लोग लगान के खिलाफ छेड़ी जंग के बारे में बताया करते थे। आज के युवा पूछते हैं कि पंचमी को हम लोग क्यों रंग खेलते हैं तो उन्हें हम लोग पूरी बात बताते हैं। वह भी गर्व महसूस करते है और खुशी-खुशी पंचमी को जमकर रंग खेल इस परंपरा में शामिल होते हैं। वहीं गांव के फारूख बताते हैं कि होली के पर्व में सभी धर्म के लोग शामिल होते हैं। उम्र के आखरी पड़ाव में खड़े होने के बावजूद हम रंगपंचमी के दिन बैलागाड़ी में बैठेंगे और आजादी के रंग और गुलाल उड़ाएंगे। बताते हैं कि अब युवा इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।

इन गांवों में नहीं खेला गया रंग
शहरी क्षेत्र के घाऊखेड़ा, देवीगंज, बीबीपुर, गंगा किनारे के वाजिदपुर, प्यौंदी गांव, शेखपुर, मोतीपुर, जानां गांव, किशनपुर, अलौलापुर समेत करीब 18 गांवों में पंचमी को रंग खेलते हैं। देवीगंज और बीबीपुर में होलिका दहन के बाद लोग आज रंग नहीं खेला। ग्रामीणों ने बताया कि रंगपंचमी की तैयारी कल से शुरू हो जाएगी। ढोल-नगाड़े के साथ ही ठंड़ाई और मिष्ठान बनाए जाएंगे। रंगपंचमी के दिन महिला, पुरूष, युवक और युवतियों की अगल-अगल टोलियां निकलती हैं। शिवहरे बताते हैं कि हर साल रंगपचंमी के दिन 18 गांवों के प्रधान और अन्य जनप्रतिनिधि भी जुलूस में शामिल होते हैं।

 

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