पढ़ाई के दौरान ही रोहित ने सेना की तैयारी शुरू की रोहित बचपन से ही लगनशील था और सरल स्वभाव का था। धीरे धीरे बचपन से किशोरावस्था में आते रोहित के जेहन में सेना में जाने की हठ कब घर कर गई, कोई नही जान सका। इसके बाद पिता के नक्शे कदम पर चलकर उसने सेना में जाने की ठान ली। वर्ष 2010 में उसने शहीद जसवंत सिंह स्मारक विद्यालय माती से हाईस्कूल किया। इसके बाद गलुआपुर इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा पास की। इस दौरान उसने सेना में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी। सुबह उठकर दौड़ लगाना, खानपान पर विशेष ध्यान देना। इसके साथ ही वह घर के कामकाजों में भी हाँथ बंटाता था।
पिता कहते हैं कि उन्हें रोहित पर पहले और आज भी फक्र है उसके सपनो को तब पंख लगे, जब 2011 में सेना के सिक्किम की 17 रेजीमेंट में उसका चयन हो गया। वह बहुत खुश था। दरअसल उसका सपना साकार हो चला था। इसके बाद दो वर्ष के लिए वे 44 आरआर बटालियन में चले गए। हालांकि पिता 2004 में सेवानिवृत्त हो गए और घर आ गए लेकिन बेटे रोहित का सेना में जाने व देशभक्ति का जज्बा उन्हें आज भी याद है। वे कहते हैं उसके बचपन को देखकर उन्हें बखूबी आभास था कि उनका बेटा एक दिन गौरान्वित करेगा। देखा जाए तो रोहित ने अपने और पिता के सपने तो साकार कर दिए, लेकिन भारत माँ का कर्ज उतारते हुए कई लोगों को रुलाकर विदा हो गए।