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बचपन से ही रोहित में थे कुछ ऐसे जज्बे, फर्ज के साथ भारत मां का कर्ज भी कर दिया अदा, जानिए क्या था शहीद का ख्वाब

locationकानपुरPublished: May 18, 2019 03:08:48 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

वर्ष 2010 में उसने शहीद जसवंत सिंह स्मारक विद्यालय माती से हाईस्कूल किया और गलुआपुर इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा पास की।

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बचपन से ही रोहित में थे कुछ ऐसे जज्बे, फर्ज के साथ भारत मां का कर्ज भी कर दिया अदा, जानिए क्या था शहीद का ख्वाब

कानपुर देहात-बच्चों में कुछ बनने की ललक उसके बचपन से ही झलकने लगती है। क्योंकि बच्चे उसी क्षेत्र के लिए प्रेरित होने लगते है। पढ़ाई लिखाई के साथ जब बच्चे बड़े होते हैं तो वही प्रतिभा उनमें बखूबी दिखने लगती है। ऐसा ही कुछ डेरापुर के शहीद रोहित यादव में था। जिन्हें अपने पिता गंगा सिंह से प्रेरणा मिली। दरअसल पिता गंगादीन की 1979 में सेना की 52, फील्ड रेजीमेंट सिक्किम में तैनाती हुई थी। उन्होंने बताया कि रोहित जब भी वर्दी में देखता था, उसके चेहरे पर मुस्कराहट दिखती थी, लेकिन अवस्था देखते हुए अनुमान लगाना मुश्किल था। जब नौकरी के दौरान वे कलकत्ता बैरकपुर पहुंचे तो यहां से पत्नी विमला व बेटे रोहित को साथ ले गए। रोहित की प्रारम्भिक शिक्षा बैरकपुर में ही पूरी हुयी।
पढ़ाई के दौरान ही रोहित ने सेना की तैयारी शुरू की

रोहित बचपन से ही लगनशील था और सरल स्वभाव का था। धीरे धीरे बचपन से किशोरावस्था में आते रोहित के जेहन में सेना में जाने की हठ कब घर कर गई, कोई नही जान सका। इसके बाद पिता के नक्शे कदम पर चलकर उसने सेना में जाने की ठान ली। वर्ष 2010 में उसने शहीद जसवंत सिंह स्मारक विद्यालय माती से हाईस्कूल किया। इसके बाद गलुआपुर इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा पास की। इस दौरान उसने सेना में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी। सुबह उठकर दौड़ लगाना, खानपान पर विशेष ध्यान देना। इसके साथ ही वह घर के कामकाजों में भी हाँथ बंटाता था।
पिता कहते हैं कि उन्हें रोहित पर पहले और आज भी फक्र है

उसके सपनो को तब पंख लगे, जब 2011 में सेना के सिक्किम की 17 रेजीमेंट में उसका चयन हो गया। वह बहुत खुश था। दरअसल उसका सपना साकार हो चला था। इसके बाद दो वर्ष के लिए वे 44 आरआर बटालियन में चले गए। हालांकि पिता 2004 में सेवानिवृत्त हो गए और घर आ गए लेकिन बेटे रोहित का सेना में जाने व देशभक्ति का जज्बा उन्हें आज भी याद है। वे कहते हैं उसके बचपन को देखकर उन्हें बखूबी आभास था कि उनका बेटा एक दिन गौरान्वित करेगा। देखा जाए तो रोहित ने अपने और पिता के सपने तो साकार कर दिए, लेकिन भारत माँ का कर्ज उतारते हुए कई लोगों को रुलाकर विदा हो गए।
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