इजाद किया चूल्हा
डाॅक्टर राव ने बताया कि हमारी टीम ने 40 ईंटों को एक के ऊपर एक रखकर तीन फिट का चूल्हा बनाने की तकनीक ईजाद की है। उन्होंने बताया कि इस चूल्हे को बनाने के लिए निचले हिस्से में ईंटों के बीच गैप रखें, ताकि जलने वाली लकड़ी को ऑक्सीजन मिल सके। लकड़ी जलाने के बाद जो अपशिष्ट बचेगा उसी से कोयला बनेगा। इससे जो बचेगा उससे खाद बनेगी। बताया कि उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में इन चूल्हों का इस्तेमाल हो रहा है। हमनें यूपी के महोबा जिले के एक गंाव में ये चूल्हों का उपयोग की योजना बनाई है।
महोबा जिले के गांव का चुना
डॉक्टर मुरलीधर राव ने बताया कि हम महोबा जिले के एक गांव को कार्बन नेगेटिव बनाने जा रहे हैं। यह ऐसा गांव होगा जहां धुआं रहित चूल्हे और अन्य साधनों में लकड़ी के प्रयोग से इस हानिकारक गैस का उत्सर्जन घटाया जाएगा। डाॅक्टर के मुताबिक इस गांव को शोध के लिए चयनित किया गया है। ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव से बातचीत पूरी कर ली गई है। जल्द ही गांव के हर घर पर चूल्हे दिए जाएंगे और लकड़ियों के जरिए दाल-रोटी ग्रामीण पकाएंगे। इसमें लकड़ी जलने के बाद कोयला बन जाती है, जो पांच रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है।
ऐसे करेगा कार्य
डाॅक्टर राव ने बताया कि महोबा के इस गांव को कार्बन नेगेटिव बनाया जाएगा। यह गांव ऐसा होगा जो कार्बन अवशोषित करेगा और उत्सर्जन बिल्कुल नहीं होगा। इसके लिए खाना पकाने से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक के काम में लकड़ी और गैसी फायर (हवा के बिना कचरे से गैस बनाने की तकनीक)का इस्तेमाल किया जाएगा। बताया, पौधे ऐसे लगाए जाएंगे जो खारे पानी को शुद्ध करें। जिससे बुंदेलखंड में पेयजल की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा।