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गठिया को दी मात
मुख्तार अहमद बताते हैं कि जब उनकी उम्र महज 10 साल की थी, तब पैरों में गठिया का दर्द हुआ। उस वक्त डॉक्टर नहीं थे। पिता हमें हकीम रहमानी चच्चा के पास लेकर गए। उन्होंने जड़ी बुटियां दी और कहा कि हरदिन तीन किमी तक पैदल चलें। योग करें, जिससे कि गठिया के अलावा शरीर की अन्य बिमारियां छू मन्नत हो जाएंगी। फिर क्या था हकीम चच्चा की बात दिल को छू गई। सुबह जग कर खेत तक दौड़ लगाते और योग कर गठिया को मात देकर गांव के बड़े-बड़े धाकड़ दौड़ने वालों को प्रतियोगिताओं में चित कर मेडल जीतने लगे।
योग जीवनचर्या का अभिन्न अंग
75 साल के होने का दावा करने वाले मुख्तार अहमद कहते हैं रोजाना योग के बूते चेहरे पर चमक, चाल में उम्र का असर नहीं। श्रवण व स्मरण शक्ति बेजोड़। कहते हैं योग मेरी जीवनचर्या का अभिन्न अंग है। बुजुर्ग अहमद खुद योग करते हैं और आसपास के बच्चों, युवक, युवतियों को योग सिखाते हैं। मुख्तार कहते हैं कि योग हर समाज, वर्ग के लोगों का करना चाहिए। मुस्लिम समाज के लोगों को भी योग कर बीमारियों से छुटकारा पाना चाहिए। बाबा रामदेव ने नहीं, बल्कि हमारे देश के साधु, संतों और धर्म गुरूओं ने योग को लेकर आए थे। इसलिए हम मुस्लिम समाज के युवाओं को योग के गुरू सिखाते हैं और घर-घर जाकर लोगों को जगारूक करते हैं।
नहीं खाई दवा
मुख्तार अख्तर ने बताया कि 10 साल की उम्र से हमनें दवा नहीं खाई। कभी डॉक्टर के पास नहीं गए। परिवार में पत्नी व बच्चों को भी डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगानें पड़े। नियमित योग के जरिए खुद के साथ ही परिवार व अन्य लोगों को योग से जोड़ा। मुख्यतार कहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री 60 साल की उम्र पार कर चुके हैं और 24 में 18 से 20 घंटे कार्य करते हैं। चुनाव के दौरान हरदिन रैलियों में भाग लेते हैं, पर उनके चेहरे में कभी थकान नहीं दिखती। उनकी इस कामयाबी के पीछे सिर्फ योग है। इसलिए आज की युवा पीढ़ी को दिन में एक घंटे योग जरूर करना चाहिए। इसके करने से पैसे के साथ ही शरीर बेहतर रहेगा।
अब भैंस चराती हैं अजमेरी
मुख्तार बताते हैं कि पड़ोस में राहने वाली अजमेरी (75) के घुटने में सूजन और दर्द था। बुजुर्ग महिला मेरे पास आई और बताया कि कई डॉक्टरों को दिखाया, हजारों का इलाज करवाया, पर दर्द ठीक नहीं हुआ। फिर हमनें उन्हें तीन हफ्ते तक योग और जड़ी बूटी चिकित्सा के जरिए इलाज किया। आज अजमेरी पूरी तरह से स्वस्थ हैं और पहले डंडा लेकर चलती है, अब खुद भैंस को चरानें के लिए खेत में लेकर जाती हैं। अहमद बताते हैं कि अब सुबह के पहर हमारे साथ मोहल्ले के युवा भी योग में हिस्सा लेते हैं और बीमारियों से अपने शरीर को बचाते हैं।
इसलिए युवा अवसाद के हो रहे शिकार
अहमद कहते हैं आज की युवा पीढ़ी ने अपने काम के घंटे तो तय कर रखे हैं, लेकिन खाने-पीने, सोने का कोई अनुशासन नहीं है और वे कम उम्र में ही सेहत को दांव पर लगा अवसाद तक पहुंच रहे हैं। योग उनके लिए काफी कारगर सहायक हो सकता है। अहमद कहते हैं कि तनाव, तमाम तरह की जिम्मेदारियां और बीमारियां जिंदगी का हिस्सा बनती जा रही हैं। गुस्सा, रंज और बेचैनी से उलझे मन को नहीं मिल रहा है आराम। इसलिए लोग दवा के साथ योग और ध्यान की शरण में जा रहे हैं। कहते हैं, यह एक बहुत ही अच्छा संकेत है लेकिन पहले यह जरूरी है कि योग को फायदे का सौदा नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा माना जाए और इसका विस्तार शहर से बढ़ा कर गांवों तक ले जाए।