जवाब में उस लड़के ने ट्रक चालक गोविंद से अपशब्द कहे और कहा कि इतनी ज्यादा दया आ रही है तो इस गाय को तुम ही क्यों नहीं ले जाते। लड़के की वह बात चालक को आहत कर गयी और उसका हृदय परिवर्तन हो गया। इस पर वह उस गाय को अपने साथ ले आया। धीरे-धीरे उसके पास एक से चार गाय हो गई और आवारा घूमती हुई गायों को देख उसने सभी को बांधना शुरू कर दिया। देखते देखते इस समय वर्तमान में 60 से 70 गाय उसके गांव में खेतों के निकट है। जहां पर उसने चारों तरफ बांस और लकड़ी से बेरीकेटिंग बना दिए। इससे आवारा पशु उसके बाहर न निकले और उनके खान-पान बैठने उठने का सही प्रबंध किया है।
किसी भी प्रशासनिक मद की सहायता न मिलने के बावजूद गोविंद पशुओं की देखभाल करने के लिए निजी धन का उपयोग करता है। उसका काफी जमा धन इस गौशाला चलाने में खर्च हो गया है। जबकि गोविंद के बच्चे पढ़ाई तक नहीं कर पा रहे। इसके बावजूद आवारा पशुओं को रखने में कोई गुरेज नहीं कर रहा है। गोविंद के इस सराहनीय कार्य को लेकर उच्च अधिकारियों को जानकारी दी गयी, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। देखा जाए तो गोविंद पाल द्वारा गौरक्षा की तरफ बढ़ाया गया एक सराहनीय कदम है, जो कि समाज में एक नजीर पेश कर रहा है। उसने बताया कि मैं भले ही सड़क पर भीख मांगने लगूँ लेकिन आवारा पशु, जो उसने पाले हैं उनको खाना पानी निरंतर देगा। इस बीच उसने शासन से मदद की गुहार भी लगाई है।