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आराध्य देव मदनमोहनजी का मनाया पाटोत्सव, आज ही के दिन विराजे थे

locationकरौलीPublished: Feb 06, 2019 06:34:03 pm

Submitted by:

Dinesh sharma

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आराध्य देव मदनमोहनजी का मनाया पाटोत्सव, आज ही के दिन विराजे थे

करौली. जन-जन के आराध्य देव करौली के भगवान मदनमोहनजी के विग्रह के स्थापना दिवस को बुधवार को पाटोत्सव के रूप में मनाया गया।

पाटोत्सव को सिंहासन यात्रा भी बोला जाता है। इस मौके पर भगवान के विग्रह का अभिषेक किया गया। साथ ही आकर्षक शृंगार कर मोनभोग का प्रसाद लगाया गया। इस मौके पर मंदिर परिसर में दिनभर महिला-पुरुष मंडलियों ने भजनों की प्रस्तुति दी।
भजन-कीर्तनों और जयकारों से मंदिर परिसर गूंजता रहा। गौरतलब है कि वर्तमान मंदिर में विधि विधान से माघ सुदी द्वितीय विक्रम संवत 1805 तद्नुसार सन 1748 में यानि करीब पौने तीन सौ वर्ष पहले भगवान के विग्रहों का प्रतिष्ठित किया गया। तभी से इस शुभ दिन को सिंहासन यात्रा के रूप में मनाया जाता है। मदनमोहनजी मंदिर ट्रस्ट व्यवस्थापक मलखान पाल, पुजारी रविकिशोर, इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा बताते हैं कि करौली के प्रतापी राजा रहे गोपाल सिंह ने वर्तमान मंदिर के मध्य कक्ष में करौली के अतिथि के रूप में मदनमोहनजी, बाएं कक्ष में राधा जी एवं ललिता सखी को विराजमान किया था।
दाएं कक्ष में गोपालजी की प्रतिमा की स्थापना की गई। इन सभी प्रतिमाओं का पाटोत्सव (प्रतिष्ठा) श्रीकृष्ण के परम भक्त राजा गोपाल सिंह ने गौडिय संप्रदाय के गोस्वामी सुबलदास द्वारा सम्पन्न कराया था।
ऐसे करौली आए भगवान मदनमोहन
इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा के अनुसार मुगल बादशाह औरगंजेब की धार्मिक असहिष्णुता तथा मंदिरों को नष्ट करने के दौरान सन 1669 में अधिकांश मंदिरों को ध्वस्त किया गया। इस स्थिति में बृज के कृष्ण भक्त आचार्यों ने इन विग्रहों को बचाने के प्रयास किए।
इसी प्रयास में सन 1718 में जयपुर नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय ने गोस्वामी सुबलदास से मिलकर गोविन्द देवजी, गोपीनाथ जी एवं मदनमोहनजी को जयपुर ले जाने की इच्छा व्यक्त की। इस पर तीनों विग्रेहों को सन् 1723 में राजसी ठाठ-बाट से वृंदावन से जयपुर लाया गया।
बताते हैं कि कृष्ण भक्त गोपाल सिंह को रात में मदनमोहनजी ने सपना देते हुए करौली आने की इच्छा जताई। करौली नरेश गोपाल सिंह की बहन राजकंवर जयपुर नरेश सवाई जयसिंह को ब्याही थी। गोपालसिंह ने जयपुर नरेश को मदनमोहनजी के स्वप्न की जानकारी और प्रतिमा को करौली भिजवाने का आग्रह किया। इस पर सन् 1742 में मदनमोहनजी के विग्रह को करौली लाया गया।
रावल के अमनिया भंडारा में विग्रहों को विराजित किया। इस बीच करीब पांच वर्ष में नवीन भव्य मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद 1748 में मदनमोहनजी के विग्रह की आज ही के दिन प्रतिष्ठा की गई।
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