करौली

जातियों का गठजोड़ शुरू, विकास के मुद्दे गौण

करौली. छात्रसंघ चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही करौली के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में चुनाव जीतने के लिए छात्र नेताओं जातियों का गठजोड़ बनाना शुरू कर दिया है।

करौलीAug 18, 2019 / 07:15 pm

vinod sharma

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करौली. छात्रसंघ चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही करौली के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में चुनाव जीतने के लिए छात्र नेताओं जातियों का गठजोड़ बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में महाविद्यालय की समस्याओं और विकास के मुद्दे गायब है। करौली जिले के सबसे बड़े इस महाविद्यालय में चार हजार छात्र मतदाता है।
यहां का चुनाव जातियों के बीच ही सिमटा रहता है। इस कारण से छात्रसंघ चुनाव के दौरान विकास के मुद्दों पर कभी चर्चा नहीं की जाती है। सिर्फ जातियों के गठजोड़ के गणित की जुगत के आधार पर ही चुनाव जीता जाता है। इस कारण इस साल भी छात्र नेताओं ने जातिगत नेताओं की शरण में जाना शुरू किया है या जातियों के हिसाब से छात्रसंघ का पैनल उतारने की तैयारी शुरू की है। पूर्व छात्रनेता बताते है कि जिस छात्रसंघ अध्यक्ष का पैनल जातिगत आधार पर होता है वह ही चुनाव में सफल होता है। जानकार बताते है कि कॉलेज में एसटी, एससी वर्ग के छात्रों का गठजोड़ प्रभावी रहता है। लेकिन गत सालों से इस गठजोड़ में सेंध लग गई है। इसी का परिणाम है कि ओबीसी वर्ग से भी छात्रसंघ पद पर छात्र विजेता हुए हैं।

जनप्रतिनिधि चुनाव में भूमिका बेअसर
जनप्र्रतिनिधियों के चुनाव में कॉलेज की छात्र राजनीति की भूमिका गौण ही दिखती है। जनप्रतिनिधि चुनाव में तो छात्र नेता गायब से ही दिखते हैं। करौली कॉलेज की छात्र राजनीति से निकला कोई भी युवा अभी प्रमुख जनप्रतिनिधि पद तक भी नहीं पहुंचा है।

संगठनों से दूर ही रहते छात्रनेता
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एनएसयूआई व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का संगठन साल भर सक्रिय रहता है। लेकिन चुनाव के समय इनकी भूमिका भी केवल चुनाव जीतने के लक्ष्य पर आधारित होती है। आमतौर पर किसी संगठन का अध्यक्ष पद का उम्मीदवार व पैनल चुनाव नहीं जीता है। हालांकि उपाध्यक्ष व महासचिव पर जरूर जीत मिली है। इस कारण छात्रनेता चुनाव के समय संगठनों से दूर ही रहते है।

ये हैं मुद्दे
छात्रसंघ चुनाव में कॉलेज की समस्याओं के मुद्दों की भरमार है। स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नियमित कक्षाएं, रसायन शास्त्र, हिन्दी में क्रमोन्नति, संसाधन, ट्यूशन पर रोक तथा महाविद्यालय की ग्रेड में सुधार जैसे मुद्दे है। लेकिन जातियों के जोर में चुनाव में ये सभी मुददे दब जाते है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य बाबू सहाय मीना बताते है कि रसायन शास्त्र में पीजी स्तर की कक्षाएं चालू कराने के प्रयास किए जाने चाहिए। जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।

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