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आजादी के दीवाने करौली के श्याम खादी बाले को भुलाया, उनके नाम पर नहीं कोई संस्थान

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करौलीAug 12, 2018 / 06:29 pm

vinod sharma

But there is no name for any government organization named after him.

आजादी के दीवाने करौली के श्याम खादी बाले को भुलाया, उनके नाम पर नहीं कोई संस्थान


करौली. बचपन से अपने जीवन को देश की आजादी के लिए खपाने वाले करौली के स्वतंत्रता सेनानी श्यामसुन्दर शर्मा को भुला दिया गया है। स्थिति यह है कि उनको दिवगंत हुए डेढ़ दशक से ज्यादा गुजरा है लेकिन उनके नाम पर किसी सरकारी संस्था का नामकरण तक नहीं है।
करौली की पुरानी सब्जी मंडी में सेवासिंह की गली निवासी श्यामसुन्दर शर्मा का जन्म जन्माष्टमी के दिन अगस्त १९१२ में हुआ। वे सात साल की उम्र में ही अपने पड़ोसी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर औंकारसिंह के सम्पर्क में आए और उनके साथ देश को आजाद कराने की मुहिम में जुट गए।
नमक सत्याग्रह में गए थे जेल
दस साल की उम्र में जब बालक खेलने-कूदने में मस्त थे, तब बालक श्यामसुन्दर शर्मा वर्ष १९२०-१९२१ में ठाकुर औंकारसिंह व रामसिंह के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मिलने अजमेर तक चले गए। वहां पर करौली की मलमल का थान तथा उस वक्त के २०० रुपए गांधी जी को भेंट किए। तब से आजादी आन्दोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती चली गई।
इतिहासकारों के अनुसार सन् १९३२ से १९४० तक चले नमक सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के लिए वे करौली से अजमेर गए। वहां सरकार ने पकडक़र उन्हें जेल में डाल दिया। छह माह तक जेल में रहे। जेल से छूटने के बाद भी उन्होंने अपने आजादी के मिशन को नहीं छोड़ा और भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया।
बेटे की मौत से भी नहीं डिगे
जब श्याम सुन्दर १९३७-३८ में अजमेर में स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। इसी बीच उनके बड़े बेटे की मौत हो गई। करौली के थाने से बेटे की मौत की सूचना दी गई, लेकिन वे विचलित हुए आन्दोलन में भाग लेते रहे। इसी प्रकार १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा होने पर सेनानी श्यामसुन्दर को अंग्रेजों द्वारा बिछाई गई गंगापुर सिटी रेल लाइन को उखाडऩे का काम किया। उन्होंने नेताजी सुभाषचन्द्र बोष के जबलपुर में आयोजित व कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।
आजादी के बाद खादी के लिए समर्पण
देश की आजादी मिलने के बाद उन्होंने खुद को खादी के लिए समर्पण कर दिया। वर्ष 1949 में हिण्डौन सिटी में खादी उत्पादक सहकारी समिति का गठन किया। ठाकुर रामसिंह की मृत्यु के बाद करौली खादी संस्था के मंत्री बने तथा १९८५ में फिर से हिण्डौन सिटी खादी का काम संभाला। १७ जून २००४ को सेनानी ने दम तोड़ दिया। राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई।
जीवनकाल में सम्मान बाद में भुलाया
आजादी आंदोलन के इस सिपाही को दिवगंत होने के बाद सरकार ने भुला डाला है। हालांकि उनके जीवन काल में भारत सरकार ने १९७२ में तथा राज्य सरकार ने १९८४ ताम्र पदक पत्र भेंट किया। दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी एक आयोजन में उनको सम्मानित किया था। उनके दिवंगत होने के बाद से उनके नाम को यादगार बनाने के लिए उनके परिजन करौली कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखे जाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं लेकिन सफलता नहीं मिल पाई है। जबकि आश्वासन सभी देते हैं। करौली के दो स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से अस्पताल तथा हायर सैकण्डरी स्कूल संचालित हैं।

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