पुलिस अफसर की लिखित डांग की कहानी पढ़ेंगे कॉलेज विद्यार्थी
पुलिस अफसर की लिखित डांग की कहानी पढ़ेंगे कॉलेज विद्यार्थी
साहित्य के क्षेत्र में रिटायर पुलिस अधिकारी की एक और उपलब्धि
बामनवास के पुलिस अधिकारी ने साहित्य क्षेत्र में नाम किया है रोशन
करौली. किसी पुलिस अधिकारी के साहित्यकार होने के उदाहरण कम ही मिलते हैं। लेकिन सवाईमाधोपुर जिले के बामनवास निवासी हरिराम मीणा ने पुलिस अधिकारी रहते साहित्य के क्षेत्र में देश में पहचान बनाई है। हरिराम भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर हो चुके हैं लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनकी सक्रियता अभी बरकरार है।

पुलिस अफसर की लिखित डांग की कहानी पढ़ेंगे कॉलेज विद्यार्थी
साहित्य के क्षेत्र में रिटायर पुलिस अधिकारी की एक और उपलब्धि
बामनवास के पुलिस अधिकारी ने साहित्य क्षेत्र में नाम किया है रोशन
करौली. किसी पुलिस अधिकारी के साहित्यकार होने के उदाहरण कम ही मिलते हैं। लेकिन सवाईमाधोपुर जिले के बामनवास निवासी हरिराम मीणा ने पुलिस अधिकारी रहते साहित्य के क्षेत्र में देश में पहचान बनाई है। हरिराम भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर हो चुके हैं लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनकी सक्रियता अभी बरकरार है। हाल ही में उनके द्वारा लिखित उपन्यास 'डांगÓ को इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक, मध्यप्रदेश के एम.ए. एवं पी.एच.डी. कोर्स में शामिल करने का निर्णय किया गया है। इससे हरिराम एक फिर चर्चाओं में आए हैं।
इससे पहले हरिराम का धूणी तपे तीर उपन्यास को दिल्ली विश्वविद्यालय समेत तीन दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों के कोर्स में पढ़ाया जाता है। इस पर जंगल में जलियांवाला नाम से लघु फिल्म भी बन चुकी है जिसे वर्ष 2011 में जयपुर में आयोजित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीबल में वेस्ट लघु फिल्म का अवॉर्ड मिला था।
चपरासी से पहुंचे आईजी तक
हरिराम भारतीय पुलिस सेवा में पुलिस महानिरीक्षक पद से 2012 में सेवानिवृत हुए थे लेकिन निर्धनता की स्थिति के बीच उन्होंने अपने कर्म की शुरूआत चपरासी, क्लर्क जैसी नौकरी से की। फिर राजस्थान पुलिस सेवा की सर्विस में प्रमोशन पाकर आईपीएस बन गए। अमूमन आईपीएस अधिकारी फील्ड में पदस्थापन की चाहत रखते हैं लेकिन साहित्य और अकादमिक गतिविधियों में रुचि होने से हरिराम ने वर्ष 2007 में फील्ड में पदस्थापन नहीं चाहने का उच्चाधिकारियों से अनुरोध किया था।
नेता और अफसरों के बीच साहित्य में बनाई पहचान
वैसे तो बामनवास इलाके की अधिकरियों और राजनेताओं का क्षेत्र होने की पहचान है। यहां से अनेक अफसरों तथा नेताओं का नाम देश-प्रदेश में प्रमुख रहा है। इस स्थिति के विपरीत हरिराम ने बामनवास का नाम साहित्य क्षेत्र में रोशन किया है। वर्ष 1952 में बामनवास के निर्धन किसान परिवार में जन्मे हरिराम के पिता किशोरी लाल कन्हैया गीतों की रचना करते थे। शायद वहां से उनको भी साहित्य लेखन की प्रेरणा मिली।
एक दर्जन पुस्तकों का प्रकाशन
हरिराम की अभी तक एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें कविताओं का संकलन, यात्रा वृतांत, ऐतिहासिक जानकारियों से सम्बंधित पुस्तकें हैं। उनके पुलिस संस्मरणों पर आधारित पुस्तक खाकी कलम है तो आदिवासियों के जीवन पर आधारित पुस्तक आदिवासी दर्शन व समाज, आदिवासी अंचल की यात्राओं का लेखन भी उन्होंने किया है। हरिराम के लिखित साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के 200 से ज्यादा छात्र-छात्राएं एम.फिल. कर चुके हैं। तीन को पीएचडी की उपाधि भी उनकी कृति पर मिल चुकी है।
मिले हैं अनेक सम्मान
पुलिस सेवा में रहते उनको भारतीय पुलिस पदक तथा राष्ट्रपति पुलिस पदक के सम्मान मिले थे। साहित्यिक क्षेत्र में हरिराम को राजस्थान साहित्य अकादमी के सबसे बड़े मीरा पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं। हरिराम को राजस्थान के राज्यपाल द्वारा बिहारी पुरस्कार और भारत के राष्ट्रपति ने महापंडित राहुल अवार्ड भी प्रदान किया था। इतना ही नहीं हरिराम राजस्थान के ऐसे एक मात्र लेखक हैं, जिनको वर्ष 2015 में विश्व हिंदी सम्मेलन में केन्द्रीय गृहमंत्री द्वारा विश्व हिंदी सेवी सम्मान दिया जा चुका है।
पुस्तकों से लगाव
हरिराम बताते हैं कि उनको पुस्तकों से शुरू से लगाव रहा है। वो जब भी स्थानान्तरण पर नए पदस्थापन स्थल पर जाते तो पुस्तकों और डायरियों के बक्से भी सामान के साथ चलते थे। उनके पास विभिन्न पुस्तकों का बेहतर संग्रह किसी पुुस्तकालय से कम नहीं है। हरिराम के अनुसार वो चाहें जितने व्यस्त अपने सेवाकाल में रहे हों लेकिन रात्रि में पुस्तक अध्ययन करना और कुछ लेखन करना कभी नहीं भूलते थे। शुरू से उनकी यह आदत आज 68 साल की आयु में भी कायम है।
अब पाइए अपने शहर ( Karauli News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज