बुजुर्गों के अनुसार सदियों पहले शहर की आबादी में बसावट का छोर (नक्कश) पर देवी मां का प्रांचीन मंदिर था। पाटोरपोश भवन में देवी मां एकल प्रतिमा विराजित थी। शहर के नक्कश पर होने से मंदिर नक्कश की देवी के नाम से ख्यात हो गया। शाहगंज निवासी सेवानिवृत शिक्षक वीरेंद्र पाण्डेय ने बताया कि मासलपुर डांग क्षेत्र के सागर सरोबर के पास तप कर रहे संत गोमतीदास का हिण्डौन आगमन हुआ। वर्ष 1986 में संत उनके घर पर रुके हुए थे। रात में संत को कैलादेवी ने जलसेन की पाल पर स्थित देवी मंदिर के पास पीपल के पेड़ के नीचे प्रतिमा के दबे होने का दरस दिया।
बुजुर्गों के अनुसार आगरा का कैला मां श्रद्धालु गोली भगत सदियों पहले बैलगाडियों से कैला मां के दर्शन करने आते थे। जो हिण्डौन में नक्कश की देवी मंदिर पर पड़ाव डालकर रुकते और देवी मां की आराधना करते।
नक्कश की देवी मंदिर में जीर्णोद्धार कर संत गोमती दास ने देवी-देवताओं की दर्जनों प्रतिमा प्रतिष्ठत करवा भव्यता दी। मंदिर में गर्भग्रह के चारों तरफ बने कक्षों में शिव परिवार, पंचमुखी हनुमान, राम मंदिर, यमराज, हनुमानजी, अष्ठभुजा दुर्गा मां, काली मांता, शीतला माता, भैरवदेव आदि के मंदिर हैं।