scriptकुत्तों के हमले में एक और हिरण की जान गई, इसी साल करौली डिस्टिक में 20 के शव मिल चुके हैं, वनविभाग है मौन | Deaths of Deer: Why Rajasthan face again and again deaths of deer? | Patrika News

कुत्तों के हमले में एक और हिरण की जान गई, इसी साल करौली डिस्टिक में 20 के शव मिल चुके हैं, वनविभाग है मौन

locationकरौलीPublished: Jul 30, 2018 07:53:39 pm

Submitted by:

Vijay ram

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Hunting Deer in Rajasthan, India News

Hunting Deer in Rajasthan, India News

करौली/हिंडौन/निसूरा/बालघाट.
राजस्थान में केलादेवी अभ्यारण्य व चंबल से जुड़े जंगल में भी वन्यजीव सुरक्षित नहीं है। इनसे सटे गांव-कस्बों के लोग आए दिन हिरणों की लाशें देखते हैं। लेकिन सरकारी तंत्र मानों आंख मूंदे बैठा है, आखिर क्यों हिरणों का शिकार हो रहा है और वे कब तक बेमौत मरेंगे..
कुत्तों के हमले में एक और हिरण मरा
बदलेटा गांव के चरागाह क्षेत्र में श्वानों के हमले से एक और हिरण की मौत हो गई। इससे पहले मई में 10 हिरणों की लाश करौली जिले के एक ही इलाके से बरामद हुई थीं, उनके अंग नुंचे हुए थे। अलग-अलग घटनाएं में इस वर्ष 20 से ज्यादा हिरण मारे जा चुके हैं, ये सिर्फ श्वानों का ही आंकडा है। लगातार हो रही हिरणों की मौत को लेकर यहां ग्रामीणों में रोष है।
मौत पर प्रदर्शन करते ग्रामीणों के अनुसार, चरागाह क्षेत्र में श्वानों के झुंड ने हमला कर हिरण को घायल कर दिया। उसका पेट फटा था, शायद कुत्तों ने ही उसे खाया होगा। इस पर ग्रामीणों ने वन विभाग के कार्मिकों को सूचित किया। कार्मिकों के समय पर पर नही पहुंचने पर ग्रामीण ही घायल हिरण को बालघाट पशु चिकित्सालय ले गए। जहां चिकित्सक के नहीं होने पर हिरण ने दम तोड़ दिया। इस पर ग्रामीणों ने चिकित्सालय के बाहर वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रोष जताया।
ऐसे करते हैं कुत्ते शिकार
समाज सेवी हरिसिंह मीना ने बताया कि क्षेत्र में १०-१२ आवारा श्वानों का झुंड घूमता रहता है। बरसात के दिनों में खेतों में पानी भरने से हिरण दौड़ नहीं पाते। ऐसे में श्वान आसानी से उन पर हमला कर देते हैं। इससे पहले शुक्रवार को भी श्वानों ने एक हिरण पर हमला कर मौत की नींद सुला दिया था। क्षेत्र में आए दिन हिरणों की मौत हो रही है, लेकिन वन विभाग का इस ओर ध्यान नहीं है। ग्रामीणों ने प्रशासन से आवारा श्वानों को पकड़वाने की मांग की है।
हिरण विचरण क्षेत्र में लगातार घटनाएं
श्रीमहावीरजी के हिरण विचरण क्षेत्र में कुट्टीन के बालाजी के पास हिरण पर स्वानों के बहुत हमले होते हैं। 20 जून २०१७ को गांव वालों ने खुद देखा था कि हिरण को पहले हमला कर घायल कर दिया गया। फिर वह मर गया। आंकडों के अनुसार, लगभग एक दशक पहले तक इरनिया, बिनेगा, हिंगोट, दानालपुर, गांवड़ी, पटोंदा, बरगमा आदि क्षेत्रों में करीब 300 से अधिक हिरण थे, जिनकी संख्या में अब करीब 150 रह गई है।
बारिश लाती है मौत का पैगाम
असल में हिरण विचरण क्षेत्र की मिट्टी काली-चिकनी है, जिससे जब भी क्षेत्र में बारिश होती है तो हिरणों की आफत आ जाती है। श्रीमहावीरजी के पशु चिकित्सा प्रभारी डॉ. बनैसिंह के अनुसार हिरणों के खुर नुकीले होते हैं। कडक़ मिट्टी में हिरण आसानी से 3 से 4 फीट तक कुलांचे भर लेते हैं, जिससे वे श्वानों से बच पाते हैं, लेकिन जैसे ही बारिश आती है तो यही नुकीले खुर मिट्टी में धंस जाने से वे दौड़ नहीं पाते और आवारा श्वान आसानी से उन पर हमला कर देते हैं।
9 वर्ष में 57 हिरणों की मौत
वन विभाग की वन्य जीव गणना के अनुसार इस इलाके में 2010 में 177 नर-मादा हिरण थे, जिनकी मई 2018 में 167 संख्या रह गई। इनमें से जून के शुरुआत में हुई बारिश में 13 हिरण श्वानों के शिकार हो गए। इससे घटकर संख्या 154 रह गई है। वहीं पशु चिकित्सालय श्रीमहावीरजी के पोस्टमार्टम रिकार्ड के अनुसार बीत 9 वर्षों में श्वानों के हमले में करीब 57 हिरणों की मौत हुई है। यह दोनों आंकड़े सरकारी रिकार्ड के अनुसार हैं। क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि अनेक हिरण पलायन कर नादौती के कैमला इलाके में पहुंच गए।
ये बोलते हैं वनाधिकारी
वनअधिकारियों से जब भी हमने पूछा कि वे इन बेजुबानों की सुरक्षा के लिए क्या-क्या करते हैं तो उनका जवाब रहता है कि वे पूरी कोशिश करते हैं। वन विभाग के हिण्डौनसिटी रैंजर आरपी शर्मा ने कहा है कि हिरणों की सुरक्षा के प्रति विभाग पूरी तरह गंभीर है। इसके लिए इरनिया-बिनेगा क्षेत्र में वनकर्मी नियुक्त किए हुए हैं। बारिश के दिनों में इनकी संख्या में और बढ़ोतरी की जाती है। वहीं एक समिति की ओर से हिरणों के लिए कुण्डों में पानी भरवाने के साथ श्वानों से बचाव के लिए भी ग्रामीण प्रयासरत रहते हैं। अध्यक्ष के अनुसार उनकी ओर से क्षेत्र के कम्प्यूनिटी रिजर्व क्षेत्र घोषित करने के साथ पर्याप्त संख्या में वनकर्मी तैनात करने की मांग करते रहे हैं।
बाघों का भी करें संरक्षण
मण्डरायल. अन्तरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर वनपाल नाका श्यामपुर में रेंजर प्रदीप शर्मा की अध्यक्षता में बैठक हुई। जिसमें बाघों के संरक्षण व जंगल बचाने पर चर्चा की गई। वनपाल दिनेश चंद शर्मा, सियाराम, वनरक्षक सुरेन्द्र, फूलसिंह आदि ने वर्तमान में बाघों की स्थिति से अवगत कराते हुए इनके संरक्षण को जरूरी बताया। बाघों के सरंक्षण पर ग्रामीण चर्चा करते हैं।
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