दोपहर करीब एक बजे तक यह परम्परा निभाई जाती है। तब तक गुड़ला परिक्षेत्र में बसे गुर्जर बैंसलाओं के 12 गांवों में शोक का माहौल रहता है। इस बीच न तो घरों में चूल्हे जलते हैं और न ही साफ-सफाई होती है। पितर तर्पण के बाद अब कुछ वर्षो से पांचना बांध पर ही समाज के मेधावियों का सम्मान समारोह एवं प्रतियोगिताएं भी आयोजित होने लगी है। इसके बाद ही समाज में दीपावली मनाने का दौर शुरू होता है।।
जुटती है हजारों की भीड़
सदियों से चली आ रही इस परम्परा को निभाने के लिए गुर्जर बैंसला गौत्र के देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग भी दीपावली पर यहां पहुंचते हैं। 12 गांव बैंसला परिवारों के बच्चे से लेकर बुुजुर्ग तक पांचना बांध पर पहुंचते हैं।
सदियों से चली आ रही इस परम्परा को निभाने के लिए गुर्जर बैंसला गौत्र के देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग भी दीपावली पर यहां पहुंचते हैं। 12 गांव बैंसला परिवारों के बच्चे से लेकर बुुजुर्ग तक पांचना बांध पर पहुंचते हैं।
हालांकि पितर तर्पण प्रत्येक परिवार का बुुजुर्ग ही करता है। इस दौरान सैकड़ों लोग पांचना बांध में एक-दूसरे का हाथ पकड़ पानी में हाथों में डाब(दूब) लेकर श्रंृखला (चेन) के रूप में अपने पूर्वजों को पानी देने की रस्म निभाते हैं।
करीब आधा घण्टे के तर्पण के दौरान अपने पूर्वजों को याद करते है। समाज की इस परम्परा को देखने अन्य समाजों के लोग भी काफी संख्या में पांचना बांध पर पहुंचते हैं। इस मौके पर समाज की प्रगति को लेकर भी चर्चा होती है।
परम्परा को लेकर ये बोले समाज के लोग
क्षेत्र के मूल निवासी तथा भिवाड़ी में निजी हॉस्पीटल संचालक डॉ. रूपसिंह गुर्जर बताते हैं कि दीपावली पर तर्पण की सदियों पुरानी परम्परा है। पितर तर्पण से पहले शोक रहता है। इस मौके पर नार्थ इण्डिया की सबसे बड़ी मानव शृंखला बनाकर पूर्वजों को पानी दिया जाता है।
क्षेत्र के मूल निवासी तथा भिवाड़ी में निजी हॉस्पीटल संचालक डॉ. रूपसिंह गुर्जर बताते हैं कि दीपावली पर तर्पण की सदियों पुरानी परम्परा है। पितर तर्पण से पहले शोक रहता है। इस मौके पर नार्थ इण्डिया की सबसे बड़ी मानव शृंखला बनाकर पूर्वजों को पानी दिया जाता है।
डॉ. गुर्जर के अनुसार बयाना -तिमनगढ़ किला होते हुए गुर्जर बैंसला समाज के लोग इस इलाके में आए थे। बरसू बाबा की समाधि गुड़ला के समीप बल्लूपुरा गांव के पास है। डॉ. गुर्जर के अनुसार आयोजन में समाज की भागीदारी बढ़ाने के लिए गत 25 वर्ष से करौली डांग विकास समिति की ओर से सहयोग किया जाता है।
गुर्जर समाज के भानू प्रतापसिंह उर्फ बटरू गुर्जर बताते हैं कि पांचना बांध बनने से पहले यहां नदी बहती थी, उस समय इस स्थान को दीपादेह कहा जाता था। बटरू बताते हैं कि जिस प्रकार भगवान राम ने वनवास से वापस आते समय सरयू नदी में पूर्वजों को तर्पण किया था, उसी भांति गुर्जर बैंसला समाज भी यह परम्परा निभाता है।
गुर्जर समाज के सुन्दरपुरा निवासी शीशराम गुर्जर बताते हैं कि सदियों पुरानी परम्परा आज भी निभाई जाती है। इस परम्परा ने अब वृहद रूप ले लिया है, पहले दीपादेह पर परिवार का मुखिया ही पहुंचता था। अब प्रत्येक परिवार के सदस्य पहुंचते हैं।
इस मौके पर शहीद, स्वतंत्रता सैनानियों, देवताओं आदि को पानी दिया जाता है।