इतिहास के पन्नों को खंगालकर देखा जाए तो मदनमोहनजी की प्रतिमा का प्राकट्य वृंदावन धाम में हुआ। इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा के अनुसार मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता तथा मंदिरों को नष्ट करने के दौरान सन 1669 में अधिकांश मंदिरों को ध्वस्त किया गया। इस स्थिति में बृज के कृष्ण भक्त आचार्यों ने पूज्य मूर्तियों को बचाने के प्रयास किए। इसी प्रयास में सन 1718 में जयपुर नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय ने गोस्वामी सुबलदास से मिलकर गोविन्द देवजी, गोपीनाथ जी एवं मदनमोहनजी को जयपुर ले जाने की इच्छा व्यक्त की। इस पर तीनों विग्रहों को सन 1723 में राजसी ठाठ-बाट से वृंदावन से जयपुर लाया गया। बताते हैं कि कृष्ण भक्त करौली नरेश गोपाल सिंह को रात में मदनमोहनजी ने सपना देते हुए करौली आने की इच्छा जताई। करौली नरेश गोपाल सिंह की बहन राजकंवर जयपुर नरेश सवाई जयसिंह को ब्याही थी।
उन्होंने जयपुर नरेश को मदनमोहनजी के स्वप्न की जानकारी देते हुए प्रतिमा को करौली भिजवाने का आग्रह किया। इस पर 1742 में मदनमोहनजी की पालकी को सवाई जयसिंह ने पूजा-अर्चना के बाद करौली के लिए रवाना किया।
रास्ते में मदनमोहनजी के विग्रह को अंजनी माता मंदिर के पास दो दिन एवं दीवान के बाग के बंगले में दो दिन ठहराया गया। इसके बाद रावल के अमनिया भंडार में गोपालजी के मंदिर में विराजित किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर माघ सुदी 2 संवत 1805 (1748 ई.) को विधि विधान से पाटोत्सव आयोजन द्वारा भगवान को विराजमान किया गया।
एक साथ दर्शन का विशेष महत्व
करौली के मदनमोहनजी, जयपुर के श्रीगोविन्ददेवजी, गोपीनाथजी के एक साथ दर्शन का विशेष महत्व है। गोविन्दजी का मुख, श्रीगोपीनाथका वक्ष और मदनमोहनजी के चरण श्रीकृष्ण के स्वरूप से हुबहू मिलते हुए हैं। इन तीनों विग्रहों का एक सूर्य में दर्शन करना सौभाग्यशाली है। वर्ष में दो बार सावनी तीज और धूलण्डी पर जगमोहन में भगवान के झूला झांकी के दर्शन होते है।
करौली के मदनमोहनजी, जयपुर के श्रीगोविन्ददेवजी, गोपीनाथजी के एक साथ दर्शन का विशेष महत्व है। गोविन्दजी का मुख, श्रीगोपीनाथका वक्ष और मदनमोहनजी के चरण श्रीकृष्ण के स्वरूप से हुबहू मिलते हुए हैं। इन तीनों विग्रहों का एक सूर्य में दर्शन करना सौभाग्यशाली है। वर्ष में दो बार सावनी तीज और धूलण्डी पर जगमोहन में भगवान के झूला झांकी के दर्शन होते है।
बीच में मदनमोहन
भगवान मदनमोहनजी को अतिथि रूप में विराजित किया गया। मंदिर के पश्चिम में बने हुए तीन विशाल कक्षों में से परिक्रमा प्रवेश द्वार की तरफ बाई ओर श्रीगोपालजी, मध्य में श्रीमदनमोहनजी एवं तुलासने की तरफ दांई ओर राधाजी एवं ललिताजी के विग्रह विराजमान हैं।
भगवान मदनमोहनजी को अतिथि रूप में विराजित किया गया। मंदिर के पश्चिम में बने हुए तीन विशाल कक्षों में से परिक्रमा प्रवेश द्वार की तरफ बाई ओर श्रीगोपालजी, मध्य में श्रीमदनमोहनजी एवं तुलासने की तरफ दांई ओर राधाजी एवं ललिताजी के विग्रह विराजमान हैं।
भगवान की कृपा के अनेक किस्से
करौली के आराध्य मदनमोहनजी के प्रति ना केवल हिन्दू भक्तों की अटूट आस्था है, बल्कि मुस्लिमभक्तों की भी भगवान के प्रति गहरी आस्था रही। वहीं भगवान की कृपा के भी कई उदाहरण है। इतिहासकार वेणुगोपाल के अनुसार ताज खां नामक व्यक्ति मदनमोहनजी का अनन्य भक्त था। वह भगवान के दर्शन के बाद ही भोजन करता, लेकिन विरोध के कारण उसका मंदिर में प्रवेश रोक देने पर ताज खां ने अन्न-जल त्याग दिया। अपने भक्त की पीड़ा देख भगवान मदनमोहन स्वयं ही प्रसाद की थाली लेकर उसके घर पहुंचे और दर्शन देकर भोजन कराया।
करौली के आराध्य मदनमोहनजी के प्रति ना केवल हिन्दू भक्तों की अटूट आस्था है, बल्कि मुस्लिमभक्तों की भी भगवान के प्रति गहरी आस्था रही। वहीं भगवान की कृपा के भी कई उदाहरण है। इतिहासकार वेणुगोपाल के अनुसार ताज खां नामक व्यक्ति मदनमोहनजी का अनन्य भक्त था। वह भगवान के दर्शन के बाद ही भोजन करता, लेकिन विरोध के कारण उसका मंदिर में प्रवेश रोक देने पर ताज खां ने अन्न-जल त्याग दिया। अपने भक्त की पीड़ा देख भगवान मदनमोहन स्वयं ही प्रसाद की थाली लेकर उसके घर पहुंचे और दर्शन देकर भोजन कराया।
इसी प्रकार कारे खां नाम के व्यक्ति के पुत्र की सर्पदंश से मृत्यु होने पर मदनमोहनजी को 108 कवित्त प्रार्थना रूप में सुनाए। चरणामृत और तुलसी मुंह में डालते ही उसका पुत्र जीवित हो गया। इनके अलावा भगवान के अनेक चमत्कार भी हैं।