हकीकत यह है शहर में ऐसा कोई इलाका या कॉलोनी नहीं है, जहां कोई अतिक्रमण नहीं हो। जहां खाली जमीन दिखी भूमाफियाओं ने कब्जा किया और मालिक बन गए। चाहे वो गली-मोहल्ला हो या फिर तालाब और सडक़ की सरकारी जमीन हो। नगर परिषद की अंधेरगर्दी के चलते कार्रवाई तो करना दूर, भूमाफियाओं के कब्जों पर पट्टे भी दिए। गौर से सोचें तो यह हम सब के लिए बड़ी चुनौती तो है ही साथ ही भविष्य के दौर की गंभीर समस्या भी है। सूत्रों के अनुसार अतिक्रमण हटाने के लिए परिषद महज नोटिस देकर खानापूर्ति करती है। कभी कोई अधिकारी सख्ती दिखाता है तो राजनीति आड़े आ जाती है। ऐसे में लाखों वर्ग गज सरकारी जमीन पर कब्जे हो चुके है।
अतिक्रमण की कहानी सालों पुरानी-
सरकारी जमीन पर अतिक्रमणों की कहानी की शुरुआत वर्षों पहले हो चुकी है। किसी प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा करने के बाद द्वसकी आड़ में दूसरे लोग भी अतिक्रमण करने लग जाते हैं। हकीकत यह है कि नगर परिषद को अतिक्रमियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन मिलीभगत के चलते वर्ष 2012-13 में सरकार से आए सर्कुलर का फायदा उठा कब्जे करने वालों को नियमन राशि जमा कर पट्टे जारी कर दिए गए। अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले दिन हिण्डौन के लिए बेहद चिंताजनक होंगे। इसके लिए हम सब को जागरूक होने की जरूरत है, सोई हुई परिषद को भी जगाना होगा। दरअसल शहर और आसपास की बेशकीमती सरकारी जमीन पर भूमाफियाओं की नजर शुरूआत से रही है। खाली जमीन को देख पत्थर गाड़ अतिक्रमण कर लेते है। देखते ही देखते स्टांप पर प्लॉट बेच, पट्टे भी बना लेते है। कितनी शिकायतें करो, परिषद को कोई फर्क नहीं पड़ता है। अतिक्रमियों ने जलसेन तालाब से लेकर शहर में विभिन्न स्थानों पर गैर मुमकिन रास्तों की सरकारी भूमि को भी नहीं छोड़ा।
सरकारी जमीन पर अतिक्रमणों की कहानी की शुरुआत वर्षों पहले हो चुकी है। किसी प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा करने के बाद द्वसकी आड़ में दूसरे लोग भी अतिक्रमण करने लग जाते हैं। हकीकत यह है कि नगर परिषद को अतिक्रमियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन मिलीभगत के चलते वर्ष 2012-13 में सरकार से आए सर्कुलर का फायदा उठा कब्जे करने वालों को नियमन राशि जमा कर पट्टे जारी कर दिए गए। अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले दिन हिण्डौन के लिए बेहद चिंताजनक होंगे। इसके लिए हम सब को जागरूक होने की जरूरत है, सोई हुई परिषद को भी जगाना होगा। दरअसल शहर और आसपास की बेशकीमती सरकारी जमीन पर भूमाफियाओं की नजर शुरूआत से रही है। खाली जमीन को देख पत्थर गाड़ अतिक्रमण कर लेते है। देखते ही देखते स्टांप पर प्लॉट बेच, पट्टे भी बना लेते है। कितनी शिकायतें करो, परिषद को कोई फर्क नहीं पड़ता है। अतिक्रमियों ने जलसेन तालाब से लेकर शहर में विभिन्न स्थानों पर गैर मुमकिन रास्तों की सरकारी भूमि को भी नहीं छोड़ा।
कहीं प्लॉट, कहीं दुकान काट कर बेच रहे भूमाफिया-
पहले कब्जा किया, फिर स्टांप पर आगे बेच दी और हो गया पक्का कब्जा। फिर क्या अंधेरगर्दी में डूबी नगर परिषद में स्टांप पर कब्जा दिखाते हुए पट्टा भी ले लिया। नगर परिषद के अधिकारियों ने तो मौका देखा और ही हालात। इतना ही परिषद के अधिकारियों ने साथ मौजूद रहकर जमीन का नियमन भी करवा दिया। अब तक कई आयुक्त आए और गए, लेकिन किसी ने सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास नहीं किए। शहर में आज भी ऐसी हजारों वर्ग गज जमीन है, जो नगर परिषद के रिकार्ड में दर्ज है। हकीकत यह है कि मौके पर कॉलोनियों आबाद हो चुकी है। सैकड़ों की संख्या में पक्के मकान बन गए। नगर परिषद में आवेदन कर लोगों ने ऐसी जमीन के पट्टे भी ले लिए। ऐसी जमीन को गिरोह के रूप में लोगों ने प्लाटिंग या दुकानें बना कर बेच दी, लेकिन नगर परिषद आंखें मूंदे देखती रही।
पहले कब्जा किया, फिर स्टांप पर आगे बेच दी और हो गया पक्का कब्जा। फिर क्या अंधेरगर्दी में डूबी नगर परिषद में स्टांप पर कब्जा दिखाते हुए पट्टा भी ले लिया। नगर परिषद के अधिकारियों ने तो मौका देखा और ही हालात। इतना ही परिषद के अधिकारियों ने साथ मौजूद रहकर जमीन का नियमन भी करवा दिया। अब तक कई आयुक्त आए और गए, लेकिन किसी ने सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास नहीं किए। शहर में आज भी ऐसी हजारों वर्ग गज जमीन है, जो नगर परिषद के रिकार्ड में दर्ज है। हकीकत यह है कि मौके पर कॉलोनियों आबाद हो चुकी है। सैकड़ों की संख्या में पक्के मकान बन गए। नगर परिषद में आवेदन कर लोगों ने ऐसी जमीन के पट्टे भी ले लिए। ऐसी जमीन को गिरोह के रूप में लोगों ने प्लाटिंग या दुकानें बना कर बेच दी, लेकिन नगर परिषद आंखें मूंदे देखती रही।
तहसील ने नगरपरिषद को सौपी थी 704 हैक्टेयर भूमि-
हिण्डौन नरपरिषद को सरकार से मिली 704 हैक्येटयर जमीन की शायद परवाह नहीं है। अतिक्रमियों ने कई जगह सरकारी जमीन पर कब्जे कर लिए हैं। अब अरबों रुपए की भूमि से अतिक्रमियों को बेदखल करने में परिषद प्रशासन को पसीना आ रहा है। राज्य सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर वर्ष 2012 में हिण्डौन नगरपालिका (अब नगर परिषद) को 704 हैक्टेयर भूमि सुपुर्द की थी। इसमें 282. 3715 हैक्टेयर सिवायचक भूमि शामिल थी। सरकारी जमीन को लेकर स्थानीय प्रशासन और नगर निकाय अधिकारी शुरुआत से ही बेफिक्र रहे। इसका फायदा उठाकर कब्जाधारियों ने कई जगह जमीन हथिया ली। सूत्रों के अनुसार कब्जे वाली सिवायचक जमीन कई टुकड़ों में करीब 15 हैक्टेयर है। जबकि करीब 05 हैक्टेयर चारागाह भूमि पर अतिक्रमी काबिज हैं।
हिण्डौन नरपरिषद को सरकार से मिली 704 हैक्येटयर जमीन की शायद परवाह नहीं है। अतिक्रमियों ने कई जगह सरकारी जमीन पर कब्जे कर लिए हैं। अब अरबों रुपए की भूमि से अतिक्रमियों को बेदखल करने में परिषद प्रशासन को पसीना आ रहा है। राज्य सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर वर्ष 2012 में हिण्डौन नगरपालिका (अब नगर परिषद) को 704 हैक्टेयर भूमि सुपुर्द की थी। इसमें 282. 3715 हैक्टेयर सिवायचक भूमि शामिल थी। सरकारी जमीन को लेकर स्थानीय प्रशासन और नगर निकाय अधिकारी शुरुआत से ही बेफिक्र रहे। इसका फायदा उठाकर कब्जाधारियों ने कई जगह जमीन हथिया ली। सूत्रों के अनुसार कब्जे वाली सिवायचक जमीन कई टुकड़ों में करीब 15 हैक्टेयर है। जबकि करीब 05 हैक्टेयर चारागाह भूमि पर अतिक्रमी काबिज हैं।
तालाब से लेकर बाजार तक कब्जे-
शहर में जलसेन तालाब के पेटे के अलावा, झारेड़ा पुलिया के पास, बयाना मोड के पास, बारोलिया पंप के पास, करौली रोड, महवा रोड, खरेटा रोड, डेम्परोड, भायलापुरा, कृष्णा कॉलोनी समेत दर्जनों स्थानों पर राजस्व रिकॉर्ड में सिवायचक व गैर मुमकिन रास्ते के रूप में दर्ज परिषद की जमीन पर सर्वाधिक कब्जे हुए हैं। इनमें भूमाफियाओं के साथ विभिन्न संगठनों से जड़े लोगों की संलिप्तता भी सामने आई है। परिषद ने पिछले 5-10 साल में जमीन की पैमाइश भी कराई। इसके लिए सरकार से आग्रह कर गिरदावर, पटवारी की सेवाएं ली गई। कई स्थानों पर कच्चे और पक्के अतिक्रमण चिह्नित किए गए। लेकिन जमीन खाली कराने और कार्रवाई का प्रयास नहीं किया।
शहर में जलसेन तालाब के पेटे के अलावा, झारेड़ा पुलिया के पास, बयाना मोड के पास, बारोलिया पंप के पास, करौली रोड, महवा रोड, खरेटा रोड, डेम्परोड, भायलापुरा, कृष्णा कॉलोनी समेत दर्जनों स्थानों पर राजस्व रिकॉर्ड में सिवायचक व गैर मुमकिन रास्ते के रूप में दर्ज परिषद की जमीन पर सर्वाधिक कब्जे हुए हैं। इनमें भूमाफियाओं के साथ विभिन्न संगठनों से जड़े लोगों की संलिप्तता भी सामने आई है। परिषद ने पिछले 5-10 साल में जमीन की पैमाइश भी कराई। इसके लिए सरकार से आग्रह कर गिरदावर, पटवारी की सेवाएं ली गई। कई स्थानों पर कच्चे और पक्के अतिक्रमण चिह्नित किए गए। लेकिन जमीन खाली कराने और कार्रवाई का प्रयास नहीं किया।
फैक्ट फाईल-
-3926.77 हैक्टेयर है हिण्डौन कस्बे का कुल क्षेत्रफल।
-704 हैक्टेयर भूमि तहसील द्वारा हस्तांतरित की गई थी नगरपरिषद को।
-282.3715 हैक्टेयर सिवायचक भूमि है नगरपरिषद के अधिकार क्षेत्र में।
-79.17 हैक्टेयर चारागाह भूमि है नगरपरिषद के अधिकार क्षेत्र में।
-16.03 हैक्टेयर सिवायचक भूमि है तहसीलदार के अधिकार क्षेत्र में।
-16 हैक्टेयर सिवायचक व 05 हैक्टेयर भूमि पर हो रहे पक्के-कच्चे कब्जे।
-3926.77 हैक्टेयर है हिण्डौन कस्बे का कुल क्षेत्रफल।
-704 हैक्टेयर भूमि तहसील द्वारा हस्तांतरित की गई थी नगरपरिषद को।
-282.3715 हैक्टेयर सिवायचक भूमि है नगरपरिषद के अधिकार क्षेत्र में।
-79.17 हैक्टेयर चारागाह भूमि है नगरपरिषद के अधिकार क्षेत्र में।
-16.03 हैक्टेयर सिवायचक भूमि है तहसीलदार के अधिकार क्षेत्र में।
-16 हैक्टेयर सिवायचक व 05 हैक्टेयर भूमि पर हो रहे पक्के-कच्चे कब्जे।
इनका कहना है शहरी क्षेत्र में सरकारी भूूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए पहले भी नगर परिषद को आदेशित किया था। अब पुन: आयुक्त को ठोस कार्रवाई के लिए निर्देशित किया जाएगा। साथ जिला कलक्टर को भी अवगत कराया जाएगा।
सुरेश कुमार यादव, एसडीएम, हिण्डौनसिटी।