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राजस्थान के इस विधानसभा क्षेत्र में पांच दशक से हावी है गुर्जर जाति

locationकरौलीPublished: Oct 05, 2018 11:29:25 am

Submitted by:

Dinesh sharma

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राजस्थान के इस विधानसभा क्षेत्र में पांच दशक से हावी है गुर्जर जाति

करौली. यहां 50 वर्ष से ऐसा कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ जब गुर्जर उम्मीदवार चुनाव मैदान में न उतरा हो। खास बात यह है कि या तो इस जाति का प्रत्याशी चुनाव जीता है या निकटतम प्रतिद्वंदी रहा है। ऐसे में करौली की सामान्य सीट को गुर्जर जाति के प्रभाव वाली सीट माना जाता है।
इतना ही नहीं राजनीतिक दल भी 1972 से इस जाति के प्रत्याशी को टिकट देते रहे हैं। बीते 50 वर्ष में विधानसभा के 11 चुनाव हुए हैं। इनमें से वर्ष 1977, 1985, 1993, 2013 के चुनाव में गुर्जर प्रत्याशी की जीत हुई। अन्य चुनावों में इस जाति के उम्मीदवार निकटतम प्रतिद्वंदी रहे।
करौली में गुर्जर प्रत्याशी के चुनाव लडऩे की शुरूआत 1967 से हुई, जब करणसिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद से प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी इस जाति के प्रत्याशी को टिकट देना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने वर्ष 1972 में सबसे पहले शिवचरण सिंह को टिकट दिया जो निर्दलीय बृजेन्द्र पाल से चुनाव हार गए। इसके बाद सन 77 में जनता लहर के बावजूद कांग्रेस टिकट पर हंसराम विधायक निर्वाचित हुए।
इसमें भी मजेदार तथ्य है कि दलों द्वारा भी इन दो परिवारों के बीच टिकटों की अदला-बदली की जाती रही है। वर्ष 1993 में भाजपा द्वारा अशोक सिंह को टिकट देने पर हंसराम भी निर्दलीय मैदान में कूद पड़े थे। दो गुर्जरों के आमने-सामने होने पर भी हंसराम विजयी हुए।
ऐसी स्थिति बीते चुनाव में भी हुई, जब दर्शन गुर्जर के साथ सौम्या भी प्रत्याशी थी। वर्तमान में यहां से हंसराम के पुत्र कांग्रेस के दर्शन सिंह विधायक हैं।

राजपरिवार के 8 चुनाव
करौली सीट पर राजपरिवार की भी प्रभावी भूमिका रही है। शुरू के पांच चुनावों (1952 से1972) में महाराज कुमार बृजेन्द्र पाल विधायक चुने गए। इसके बाद वर्ष 2003 में राजपरिवार प्रमुख कृष्णचंद पाल, 2008 में उनकी पत्नी रोहिणी तथा 2013 में फिर रोहिणी भाजपा प्रत्याशी बन मैदान में उतरी।
मीणाओं का भी होने लगा ध्रुवीकरण
करौली मेें गुर्जर जाति के मुकाबले में अब मीणा मतदाताओं का भी ध्रुवीकरण होने लगा है। जर्नादन सिंह गहलोत मीणा मतों के बूते पर ढाई दशक तक यहां की राजनीति में प्रभावी रहे।
वे मीणा मतदाताओं के सहारे से तीन बार यहां से विधायक निर्वाचित हुए। वर्ष 98 तक सीधे तौर पर कोई प्रभावी मीणा प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरा। पिछले तीन चुनावों से मीणा मतदाताओं को ध्रुवीकरण यहां के चुनाव नतीजे को प्रभावित करता रहा है। इसी का परिणाम था कि वर्ष 2003 में बसपा से सुरेश मीणा के विधायक चुने गए।
इस नतीजे में मीणा मतदाताओं का ध्रुवीकरण स्पष्ट दिखा। इसी को देख कांग्रेस ने 2008 में चन्द्र प्रकाश मीणा को अपना उम्मीदवार बना मैदान में उतारा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। बीते चुनाव में राजपा के प्रत्याशी लाखनसिंह के पक्ष में मीणा वोटर लामबंद दिखे तो उनको 33 हजार से अधिक मत प्राप्त हुए।
1967 करणसिंह निर्दलीय पराजित
1972 शिवचरण सिंह कांग्रेस पराजित
1977 हंसराम गुर्जर कांग्रेस विजयी
1980 हंसराम भाजपा पराजित
1985 शिवचरण सिंह भाजपा विजयी
1990 शिवचरण सिंह भाजपा पराजित
1993 हंसराम निर्दलीय विजयी
1993 अशोक सिंह भाजपा पराजित
1998 हंसराम भाजपा पराजित
2003 हंसराम निर्दलीय पराजित
2008 दर्शनसिंह बसपा पराजित
2013 दर्शनसिंह कांग्रेस विजयी
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