scriptदो साल से केन्द्र-राज्यसरकार के बीच लटका है ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला | Hanged for two years Case of Eco Sensitive Zone Determination | Patrika News

दो साल से केन्द्र-राज्यसरकार के बीच लटका है ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला

locationकरौलीPublished: Jan 22, 2021 10:03:28 am

Submitted by:

Surendra

2 साल से लटका है ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला
देरी के चलते 50 खनिज पट्टे हो चुके खत्म, खनिज विभाग को 5 करोड़ वार्षिक की चपत करौली. कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र में ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला दो साल से अटका पड़ा है। इस देरी से करौली एरिया में 50 खनिज पट्टों के नवीनीकरण नहीं हो सके हैं । भविष्य में 121 खनिज पट्टों का भी नवीनीकरण नहीं होगा। इससे सरकार को विभिन्न करों के में 20 करोड़ रुपए वार्षिक का नुकसान हो रहा है। इलाके की अर्थव्यवस्था, रोजगार और विकास भी संकट में हैं।

दो साल से केन्द्र-राज्यसरकार के बीच लटका है  ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला

दो साल से केन्द्र-राज्यसरकार के बीच लटका है ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला

दो साल से केन्द्र-राज्यसरकार के बीच लटका है
ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला


देरी के चलते 50 खनिज पट्टे हो चुके खत्म,
खनिज विभाग को लग रही 5 करोड़ वार्षिक की चपत
केन्द्र और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य की कमी
पत्थर व्यवसायियों के लिए नहीं मिल रही राजनीतिक मदद
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
करौली. कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र में ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का मामला दो साल से अधिक समय से केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच सामंजस्य की कमी से अटका पड़ा है। इस देरी से करौली एरिया में 50 खनिज पट्टों के नवीनीकरण नहीं हो सके हैं और भविष्य में 121 खनिज पट्टों का भी नवीनीकरण नहीं हो पाएगा। इस स्थिति से सरकार को विभिन्न करों के रूप में 20 करोड़ रुपए वार्षिक राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा इलाके की अर्थव्यवस्था, रोजगार और विकास पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश की अनुपालना में वन विभाग ने कैलादेवी अभयारण्य सीमा से 10 किलोमीटर परिक्षेत्र में खनिज गतिविधियों पर रोक लगाई हुई है। इस कारण से इलाके में अधिकांश सैण्ड स्टोन, सिलिका सैण्ड की खदानें, बनास से बजरी की निकासी, क्रेशर आदि के संचालन पर रोक लगी हुई है। जो संचालित हैं तो उनके पट्टों (लीज) की समयावधि पूर्ण होने पर वे भी बंद हो जानी है। इसका कारण है कि अभयारण्य सीमा के 10 किमी. परिधि में खनिज गतिविधियों के लिए प्रदूषण बोर्ड द्वारा अप्रेल 19 से पर्यावरण सम्मति (एनएसी) देना बंद कर दिया है।
गौरतलब है कि प्रत्येक लीज होल्डर को 3 वर्ष में प्रदूषण बोर्ड से इस सम्मति का नवीनीकरण कराना होता है। इसके बिना खनिज उत्पादन नहीं किया जा सकता। अभयारण्य क्षेत्र की 10 किलोमीटर की परिधि में अलग-अलग किस्म की लगभग 150 खनिज लीज दी हुई हैं। इनमें से कुछ तो पहले से बंद हैं और कुछ दो वर्ष से प्रदूषण बोर्ड की सम्मति नहीं मिलने से बंद होती जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार भरतपुर के प्रदूषण मंडल कार्यालय में 5 हेक्टेयर क्षेत्र की लगभग 20 पत्रावली तथा 5 हेक्टेयर से अधिक एरिया की 30 से अधिक पत्रावली जयपुर मुख्यालय में दो वर्ष से लम्बित हैं। अगर ईको सेंसेटिव जोन की सीमा तय करके राहत नहीं दी गई तो धीरे धीरे शेष रहे 121 खनिज लीज भी नवीनीकरण नहीं होने से खत्म हो जाएंगी।
राहत के प्रस्ताव में बेवजह देरी
खनिज व्यवसाय को राहत देने के लिए कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र को लेकर ईको सेंसेटिव जोन के निर्धारण की मांग लगातार उठाई जा रही है। इसी क्रम राज्य सरकार ने कार्रवाई करते हुए अभयारण्य के ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को नवम्बर 2018 में भेज दिया। इस प्रस्ताव के केन्द्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय से अनुमोदन हो जाने पर अभयारण्य सीमा से लगभग एक किमी की परिधि में खनिज गतिविधि सहित गैर-वानिकी गतिविधि शुरू हो सकेंगी। वर्तमान में 10 किमी. परिक्षेत्र में खनिज सहित सभी गैर-वानिकी गतिविधि बंद हैं। इससे पूरे इलाके की अर्थ व्यवस्था चरमरा रही है।
यह प्रस्ताव सवा दो वर्ष में भी अनुमोदित नहीं हो सका है। इस प्रस्ताव पर केन्द्रीय वन-पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकार से दो बिन्दुओं पर जानकारी चाही है। यह जानकारी कोई ज्यादा जटिल भी नहीं है लेकिन बीते डेढ़ साल से यह जानकारी राज्य के वन विभाग की ओर से केन्द्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय को उपलब्ध नहीं कराई गई है। खास बात यह है कि केन्द्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय चाही गई जानकारी भेजने के लिए तीन बार स्मरण पत्र प्रदेश के वन विभाग को भेज चुका है।
राजनीतिक मदद नहीं
खनिज व्यवसायियों का मानना है कि ईको सेंसेटिव जोन के निर्धारण का मामला दो साल से राजनीतिक पैरवी के अभाव में अटका है। उनका कहना है कि कैलादेवी अभयारण्य के ईको सेंसेटिव जोन निर्धारण के प्रस्ताव जब भेजे गए थे तभी राजसमंद संसदीय क्षेत्र से कुम्भलगढ़ अभयारण्य तथा कोटा संसदीय क्षेत्र से मुकन्दरा अभयारण्य में भी ईको सेंसेटिव जोन निर्धारित करने के प्रस्ताव भेजे गए थे। लेकिन वहां की राजनीतिक पैरवी मजबूती से होने के कारण उनको स्वीकृति मिल गई जिसके कारण वहां की खनिज गतिविधियों को जीवनदान मिल गया और बेहतर तरीके से संचालित हैं। करौली इलाके में राजनीतिक पैरवी की कमी से यह मामला अटका पड़ा है।
सरकार को चपत, आजीविका पर संकट
कैलादेवी अभायरण क्षेत्र से 10 किलोमीटर की परिधि में खनिज गतिविधियों पर रोक होने से इलाके की अर्थ व्यवस्था चरमराती जा रही है। इस क्षेत्र की आजीविका का प्रमुख जरिया खनिज व्यवसाय रहा है। लेकिन खनिज उत्पादन के लगातार कम होने से सरकार को खनिज रॉयल्टी, जीएसटी सहित अन्य टैंक्सों से लगभग 20 करोड़ रुपए सालाना का नुकसान हो रहा है। इसके अलावा यहां के परिवहन व्यवसाय में मंदी है। खनिज व्यवसायी, खनन मजदूर, परिवहन से जुड़े हजारों लोग को रोजगार कम मिल पा रहा है। अगर ईको सेंसेटिव के निर्धारण में और देरी हुई तो खनिज व्यवसाय लगातार चौपट ही होता जाएगा।
इनका कहना है..

खत्म हो जाएगा खनिज व्यवसाय
कैलादेवी अभायरण क्षेत्र में ईको सेंसटिव जोन का प्रस्ताव केन्द्र व राज्य सरकार के बीच अटका हुआ है। कम से कम आधा दर्जन बार वन मंत्री से मुलाकात करने के अलावा जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों को अनेक बार रूबरू होकर समस्या से अवगत करा चुके हैं। ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई पत्थर व्यवसायियों की नहीं हो रही है। अगर जल्दी इस बारे में निर्णय न हुआ तो 121 सैण्ड स्टोन लीज भी खत्म हो जाएगी। खनिज व्यवसाय इलाके से खत्म हो जाएगा।
मदनमोहन शर्मा उर्फ पप्पू पचौरी, अध्यक्ष माइनिंग एसोसिएशन करौली

इसी काम में जुटे हैं
हम इसी काम में जुटे हुए हैं। कोई कमी नहीं रखना चाहते जिससे फिर से कोई आपत्ति नहीं आए। एक-एक बिन्दु पर ध्यान से काम करना पड़ रहा है। ये ऐसा काम है जो एक बार मुश्किल से हो पाता है। इसलिए जल्दबाजी नहीं हो सकती। पत्थर व्यवसायी अनावश्यक प्रेशर बना रहे हैं। चाही गई सूचना के साथ प्रस्ताव फिर से जल्दी भेज दिया जाएगा।
टीसी, वर्मा, मुख्य वन संरक्षक रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो