मंदिर के पास स्थित कॉलोनी निवासी सेवानिवृत शिक्षक भरतसिंह गुर्जर ने बताया कि कई सदी पहले रियासत काल में इस स्थान पर नागा सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। जो जयपुर रियासत में कारिंदे हुआ करते थे। नागाओं के समूह के रूप में रहने से यह स्थान नागाओं की छाबनी के नाम से जाना जाता है। कालांतर में नागाओं के परिवार छाबनी से अन्यत्र चले गए।
बुजुर्गों के अनुसार रियासत काल में नागाओं के संतों ने छाबनी में करीब सवा चार फीट की ऊंची हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की थी। उस दौरान मंदिर के पास तत्कालीन शासक ने ने बुर्जा का निर्माण कराया था। मंदिर के पास हनुमानजी की प्रतिमा के अलावा लोकदेव ठाकुर बाबा की प्रतिमा भी विराजित है। हनुमानजी प्रतिमा के पास छतरी में शिव परिवार की प्रतिमाओं की स्थापना कराई गई। दशकों तक हनुमानजी की प्रतिमा पत्थरों की पट्टियों की खिरकारी में विराजित रही। करीब छह दशक पूर्व नागाओं की छाबनी के निवासी हुकम पटेल ने मंदिर का का जीर्र्णाेद्धार का कमरानुमा भवन में हनुमानजी की प्रतिमा को विराजित कराया गया। वर्षों से मंदिर में आरती पूजा का कार्य हुकम सिंह पटेल के पुत्र शेरसिंह कर रहे हैं।
भक्तों ने संवारा मंदिर-
भरतसिंह ने बताया कि जर्जर हाल हुए प्राचीन मंदिर की सार संभाल भक्तों द्वारा की जा रही है। मनोकामना पूरी होने पर भक्तों ने मंदिर में टीन शेड़,मार्बल फर्श निर्माण का कार्य करवाया है।
भरतसिंह ने बताया कि जर्जर हाल हुए प्राचीन मंदिर की सार संभाल भक्तों द्वारा की जा रही है। मनोकामना पूरी होने पर भक्तों ने मंदिर में टीन शेड़,मार्बल फर्श निर्माण का कार्य करवाया है।
30 फीट ऊंचा है मंदिर का बुर्जा
हनुमान मंदिर के पास स्थित बुर्जा करीब 30 फीट ऊंचा है। चार मंजिला बुर्जा का निर्माण रियासत काल में किया गया था। मंदिर के पुजारी के अनुसार बुर्जा की पहली मंजिल में संतों के चित्र व स्मृति चिह्न रखे हैं।