सीजन के समय क्षेत्र में कम बारिश होने से अकाल की आशंका से किसान परेशान थे, लेकिन इन दिनों तुषार की फुहारों ने पानी की पूर्ति कर दी। जिले में ८६ हजार हैक्टेयर भूमि मेें सरसों व ८५ हजार हैक्टेेयर भूमि में गेहूं की फसल की बुवाई की गई, लेकिन कम बारिश होने से फसलें पूरी तरह से अंकुरित नहीं हो पाई। इससे किसानों को औसत से भी कम पैदावार की उम्मीद थी। किसान ओस गिरने से पहले तक गेहूं की फसलों में तीन बार व सरसों की फसलों में दो बार सिंचाई कर चुके थे। फिर भी उन्हें अच्छी पैैदावार की आस नहीं थी, लेकिन नया साल नई उम्मीदें लेकर आया तो मुरझाई फसलों के साथ किसानों के चेहरे भी खिल उठे।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक प्रति हैक्टेयर भूमि मेें सरसों की पैदावार औसतन १० से १२ व गेहूं की १६ से १८ क्विन्टल पैदावार होती है। इसके अनुसार विभाग जिलेभर मेें करीब सवा नौ लाख क्विन्टल सरसों व १८ लाख क्विन्टल गेहूं की पैदावार का अनुमान लगा रहा था, लेकिन ओस टपकने से उत्पादन में करीब पांच से १० प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। ऐसे में जिले मेें करीब ६० हजार क्विन्टल सरसों व ८५ हजार क्विन्टल गेहंू की अधिक पैदावार होना तय माना जा रहा हैे।
बूंदों ने बचाए किसानों को लाखों रुपए
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार प्रति हैक्टेयर भूमि में फसल की एक बार सिंचाई पर करीब १२०० रुपए की लागत आती है। सरसों की फसल में तीन-चार बार, वहीं गेहूं में पांच-छह बार सिंचाई करनी पड़ती हैें, लेकिन आसमान से बरसी नाइट्रोजनयुक्त ओस की बूंदों ने जिलेभर के किसानों के सिंचाई पर खर्च होने वाले लाखों रुपए बचा लिए हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ओस की बूंदें पत्तों के रास्ते पौधे को प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन के साथ यूरिया व अन्य कई तत्वों की पूर्ति करती हैं।
मिला है पर्याप्त पोषण
ओस के साथ कई खनिज लवणों के गिरने से फसलों को पर्याप्त पोषण मिला है। इससे सरसों व गेहूं के उत्पादन में वृद्धि होना स्वाभाविक है। किसानों को एक से दो बार की सिंचाई कम करनी पड़ेगी। इससे उन्हें फायदा होगा।— मोहनलाल मीणा
सहायक निदेशक कृषि विस्तार, हिण्डौैनसिटी।