मौजूदा दिनों में 10-12 की संख्या में ही स्लेट फैक्ट्रियां रह गई हैं। स्लेट उद्यमियों के अनुसार पूर्व में देश के सभी राज्यों में हिण्डौन से स्लेट बनाकर सप्लाई की जाती थीं, लेकिन वर्तमान में राजस्थान व यूपी के कुछ जिलों के साथ बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात आदि राज्यों में हिण्डौन में तैयार की जा रही स्लेट की खपत हो रही है।
पांच वर्ष के अंतराल में जिन राज्यों में हिण्डौन की स्लेट की सप्लाई बंद हुई हैं, उनमें महाराष्ट्र कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल, हरियाणा व पंजाब आदि शामिल हैं। स्लेट उद्यमियों का कहना है कि सरकारी व निजी स्कूलों में पूर्व में बच्चों की पढ़ाई का प्रथम आधार स्लेट और पेन्सिल ही हुआ करता था, लेकिन पहले निजी स्कूलों और बाद में कई राज्यों के सरकारी स्कूलों में स्लेट का चलन बंद कर दिया गया।
यही कारण है कि कभी देश भर में पहचान कायम करने वाला स्लेट उद्योग मौजूदा दिनों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। सस्ती स्लेट की मांग से पिछड़ा उद्योग
स्लेट उद्यमी श्याम गुप्ता ने बताया कि जिन राज्यों में अभी स्लेट की मांग बनीं हुई है, उनमें भी सस्ती स्लेट की मांग ज्यादा है। ऐसे में हिण्डौन के कुछ स्लेट उद्यमी आंधप्रदेश के मार्कापुर में तैयार होने वाली 10 रुपए बिक्री की स्लेट को लाकर अन्य राज्यों में सप्लाई कर रहे हैं, जबकि हिण्डौन में अच्छी क्वालिटी की स्लेट 14 रुपए तक की बिक्री वाली तैयार हो पा रही है। उद्यमी गुप्ता ने बताया कि सस्ती स्लेट तैयार करने वाले गुणवत्तापूर्ण कैमिकलों की अनदेखी करते हैं।
स्लेट उद्यमी श्याम गुप्ता ने बताया कि जिन राज्यों में अभी स्लेट की मांग बनीं हुई है, उनमें भी सस्ती स्लेट की मांग ज्यादा है। ऐसे में हिण्डौन के कुछ स्लेट उद्यमी आंधप्रदेश के मार्कापुर में तैयार होने वाली 10 रुपए बिक्री की स्लेट को लाकर अन्य राज्यों में सप्लाई कर रहे हैं, जबकि हिण्डौन में अच्छी क्वालिटी की स्लेट 14 रुपए तक की बिक्री वाली तैयार हो पा रही है। उद्यमी गुप्ता ने बताया कि सस्ती स्लेट तैयार करने वाले गुणवत्तापूर्ण कैमिकलों की अनदेखी करते हैं।
10 वर्ष में 70 से 25 करोड़ पर सिमटा कारोबार
हिण्डौन में वर्ष 1974 में सर्वप्रथम स्लेट बनाने का कार्य स्व. जुगलप्रसाद जैन ने केशवपुरा स्थित अपने घर में ही शुरू किया था। उसके बाद स्लेट फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ती गई।
हिण्डौन में वर्ष 1974 में सर्वप्रथम स्लेट बनाने का कार्य स्व. जुगलप्रसाद जैन ने केशवपुरा स्थित अपने घर में ही शुरू किया था। उसके बाद स्लेट फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ती गई।
स्लेट उद्यमियों के अनुसार एक दशक पहले स्लेट की दो और पांच रुपए कीमत थी, तब स्लेट उद्योग का वार्षिक टर्नओवर 70 करोड़ रुपए था। सरकारी संरक्षण के अभाव और लगातार घटती मांग के चलते मौजूदा दिनों में स्लेट की कीमत अधिक होने के बाद भी वार्षिक टर्न ओवर 25 करोड़ पर ही सिमट गया है।
एक दशक पहले स्लेट फैक्ट्रियों में दो हजार से ज्यादा श्रमिक कार्य करते थे, लेकिन वर्तमान में 700-800 श्रमिक ही कार्य कर रहे हैं। ऐसे बनती हैं स्लेट
स्लेट बनाने में टीन पत्ती, हाईबोर्ड, गत्ता, पेन्टस, कैमिकल आदि का उपयोग किया जाता है। सस्ती स्लेट बनाने में विटोमिन(डामर) व केरोसिन के साथ गत्ते का उपयोग किया जाता है, जबकि गुणवत्ता पूर्ण स्लेट में नामी कंपनी के एमटीओ (ऑयल) का उपयोग किया जाता है।
स्लेट बनाने में टीन पत्ती, हाईबोर्ड, गत्ता, पेन्टस, कैमिकल आदि का उपयोग किया जाता है। सस्ती स्लेट बनाने में विटोमिन(डामर) व केरोसिन के साथ गत्ते का उपयोग किया जाता है, जबकि गुणवत्ता पूर्ण स्लेट में नामी कंपनी के एमटीओ (ऑयल) का उपयोग किया जाता है।