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लोकगीतों में झलकती है संस्कृति

locationकरौलीPublished: Nov 13, 2019 12:31:54 pm

Submitted by:

Jitendra

गुढ़ाचन्द्रजी. घेरे की थाप,्र नौबत के डंके के बीच मंजीरे की झंकार के साथ गांवों में गाए जाने वाले लोकगीतों का अंदाज निराला है। इन गीतों से एक ओर जहां मनोरंजन के साथ प्रेम व भाईचारा बढ़ता है तो दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ भारतीय संस्कृति झलकती है।

लोकगीतों में झलकती है संस्कृति

गुढ़ाचन्द्रजी क्षेत्र के एक गांव में कन्हैया दंगल में प्रस्तुति देते कलाकार

बढ़ता है प्रेम व भाईचारा
गुढ़ाचन्द्रजी. घेरे की थाप,्र नौबत के डंके के बीच मंजीरे की झंकार के साथ गांवों में गाए जाने वाले लोकगीतों का अंदाज निराला है। इन गीतों से एक ओर जहां मनोरंजन के साथ प्रेम व भाईचारा बढ़ता है तो दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ भारतीय संस्कृति झलकती है।
गांवों में कन्हैया, हरिकीर्तन, पद, सुड्डा आदि गाए जाते है। इनमें कन्हैया दंगल का प्रमुख स्थान है। कन्हैया दंगल में मेडिय़ाओं के अलावा ६०-७० लोगों की मंडली होती है। जो एक साथ मिलकर गीत गाती है। इन गीतों से लोगों को धार्मिक व पौराणिक कथाएं सुनने को मिलती है। साथ ही लोगों में भाईचारे के साथ मेलमिलाप बना रहता है। गांवों में अधिकांश लोग खेती-बाड़ी का कार्य करते है। गर्मियों में लोग खेती से निवृत्त होकर गीत गाते है।
मनोरंजन के साथ बढ़ता है भाईचारा
ढहरिया निवासी मेडिय़ा कमल राम मीना का कहना है कि गांवों में मनोरंजन का प्रमुख साधन कई पीढिय़ों से लोकगीत रहे हैं। गीत बनाने में १५ से २० दिन लग जाते है। गीत बनाने में रामायण की चौपाई, भजन, धार्मिक कथा के साथ फि ल्मी गीत की तर्ज द्वारा बनाया जाता है। लोकगीतों से लोगों में भाईचारे बढऩे के साथ मनोरंजन होता है।
संस्कृति का मिलता है ज्ञान
गुढ़ाचन्द्रजी निवासी मेडिय़ा बाबूलाल सैनी का कहना है कि लोकगीतों में भारतीय संस्कृति झलकती है। लोकगीतों को बनाने के बाद पहले रगगी (अभ्यास) किया जाता है। इसके बाद गीत गाया जाता है। लोकगीतों से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति का ज्ञान व पौराणिक कथाओं का ज्ञान सिखने को मिलता है।
झलकता है साम्प्रदायिक सौहार्द
तिमावा निवासी मेडिय़ा रामरतन मीना का कहना है कि उनका मुख्य व्यवसाय तो कृषि है। लेकिन गर्मियों में किसान वर्ग खेती-बाड़ी से निवृत होकर गीत गाते है। घेरे, नौबत, मंजीरे व हरमोनियम आदि से गीत गाए जाते है। सभी समाज के लोग एक जाजम पर बैठकर गीत गाते है। इससे भाईचारे के साथ साम्प्रदायिक सौहार्द भी झलकता है।
बढ़ता है भाईचारा
गोरड़ा निवासी मेडिय़ा जैला मीना का कहना है कि सुरवंदा, तोड़, जकड़ी, झक्कड़, दुबेला आदि से गीत बनता है। लोकगीत में ४-५ मुख्य कलाकारों के अलावा ६०-७० अन्य कलाकार मिलकर गीत गाते है। इससे आपसी द्वेष की भावना मिट जाती है। वही लोगों में भाईचारे की भावना विकसित होती है।

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