अमरूदों की पैदावार में बढ़ी रुचि
करौलीPublished: Jan 08, 2020 01:06:12 pm
जीरोता. किसानों का रूझान अब बागवानी की ओर बढ़ रहा है। क्षेत्र के किसान अमरूदों की पैदावार में रुचि दिखा रहे हैं। क्योंकि अमरूद के बगीचे खासी आमदनी का जरिया बन रहे हंै। किसानों के पास खेती के लिए जमीन कम होती जा रही है।
जीरोता में अमरूदों की खेती
जीरोता. किसानों का रूझान अब बागवानी की ओर बढ़ रहा है। क्षेत्र के किसान अमरूदों की पैदावार में रुचि दिखा रहे हैं। क्योंकि अमरूद के बगीचे खासी आमदनी का जरिया बन रहे हंै। किसानों के पास खेती के लिए जमीन कम होती जा रही है। पहले जो किसान कई कई बीघा खेतों के मालिक हुआ करते थे वहीं आगे की पीढ़ी एक-एक एकड़ जमीन की मालिक रह गईहै।
परम्परागत खेती से परिवार चलाना मुश्किल
किसानों ने बताया कि अब परम्परागत खेती के भरोसे परिवार चलाना मुश्किल है। बाजरे, गेहूं आदि में अधिक लाभ नहीं मिल रहा है। मेहनत भी बहुत है। हर साल मौसम की मार से काफी नुकसान होता है। कई बार तो लागत भी नहीं निकल पाती है। फसल कटाई में मजदूरों की भी जरूरत पड़ती है। जिनको भी मजदूरी देनी पड़ती है। ऐसे में अब किसान बागबानी में किस्मत अजमा रहे हैं।
लागत-मेहनत कम
किसानों ने बताया कि अमरूदों की पैदावार में लागत और मेहनत फसलों के की पैदावार के मुकाबले कम है। इस तरह एक एकड़ जमीन के मालिक को भी करीब डेढ़ लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है। सिंचाई, खाद आदि में मशक्कत नहीं है। किसान रामफूल मीना का कहना है कि अधिकतर किसान ऐसे हैं जिनके पास एक-दो एकड़ ही जमीन है।
२५० बीघा में लगाए बगीचे
समीपवर्ती सवाईमाधोपुर जिले में अमरूदों की बम्पर पैदावार और वहां के किसानों की बदलती आर्थिक स्थिति को देखकर यहां के किसानों के मन में भी अमरूद उत्पादन का मानस बना है। खेड़ला, जीरोता, एकट, गोरधनपुरा, गांवदा, हाडौती, जोड़ली आदि गांवों में करीब २५० बीघा में बगीचे तैयार किए हैं। अमरूदों के पौधे सवाईमाधोपुर सहित लखनऊ, इलाहबाद, आगरा आदि से मंगवाए जा रहे हैं।
हर तरह से फायदेमंद
पंडित लक्ष्मीकांत वैद्य बताते हंै कि अमरूद में कई औषधीय गुण है। यह खाने में स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक होता है। वहीं इसकी कोमल पत्तियों का प्रयोग मुख में छाला और मधुमेह जैसे रोगों को मिटाने में किया जाता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
चने की फसल से किसानों को अच्छी उम्मीद
गुढ़ाचन्द्रजी. खरीफ की फसल में बरसात से भारी नुकसान झेल चुके किसानों को अब रबी की फसल से उम्मीद जगी है। काली चिकनी मिट्टी के लिए मशहूर जिले में कृषि वर्षा पर आधारित होती है। लेकिन इस बार रुक-रुककर हुई बारिश से खेतों में नमी होने से लोगों ने गेहूं, सरसों के साथ दलहन फसल चने की अन्य वर्षो की अपेक्षा इस बार अधिक बुवाई की है। जिले में अधिकांश गांवों में किसानों ने चने की बुवाई की है।
यही कारण है कि कृषि विभाग के लक्ष्य से भी अधिक बुवाई हुई है। कृषि विभाग की ओर से जिले में चने की बुवाई का लक्ष्य ८५०० हैक्टेयर भूमि था। इसके विपरित किसानों ने करीब दस हजार हैक्टेयर में चने की बुवाई की है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष चना किसानों की झोली भर देगा। दूसरी ओर माड़ क्षेत्र में भी चने की फसल अधिक होती है। लेकिन लगातार बारिश की कमी से लोगों का एक दशक से चने की फसल की तरफ रुझान कम था। लेकिन इस वर्ष रुक-रुक कर हुई बारिश से जमीन में आई नमी के कारण किसानों ने चने की खेती को पसंद अधिक किया है। नांगलशेरपुर निवासी प्रगतिशील किसान शिवदयाल मीना ने बताया कि चने की फसल खेतों में लहलहा रही है। इससे किसानों को चने की अच्छी उपज की उम्मीद है। आने वाले दिनों में अगर मावठ हो जाती है तो चने की फसल में फायदा होगा। इससे बंपर पैदावार होगी। उल्लेखनीय है कि चना दलहन फसल है। जो दालों के काम आती है। पत्रिका संवाददाता