दो दशक पहले तक अच्छी बारिश होने से दोनों बांध लबालब भरे रहते थे। बांधों के पानी से आसपास के कुंए, नलकूप, हैंडपंप आदि का भी जलस्तर बना रहता था। लोग प्यास बुझाने के साथ फल सब्जियों की पैदावार प्रचुर मात्रा में करते थे। इसके अलावा खेतों में भी बांध के पानी से पड़ाव करने के साथ फसलों में सिंचाई करते थे। चारों ओर पानी की प्रचुरता रहती थी। लेकिन बीते दो दशक से पर्याप्त बारिश नहीं होने से बांधों में नाम मात्र का पानी ही रहता है। इस कारण बांधों का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है। कई लोगों ने बांध के समीप ही गहरे नलकूप खुदवा लिए हैं। जो लगातार पानी का दोहन कर रहे हैं। इसके कारण बारिश में बांध में भरने वाला पानी दो-तीन माह में ही रीत जाता है। उसके बाद बांध में धूल उड़ने लगती है। लेकिन इस वर्ष किसानों ने कड़ी मेहनत के साथ कार्य करते हुए अलवर जिले के किसानों के साथ सब्जियों की बुवाई की है। जिससे उनको अच्छा मुनाफा मिल रहा है।
जानकारों के मुताबिक करीब २२ साल पहले अच्छी बारिश होने से मोरा सागर व विशनसमंद बांध में चादर चली थी। उसके बाद से मानसून की बेरुखी के चलते बांध कभी भी पूरे नहीं भर पाए। पहले बांध के पानी से भरपूर सिंचाई होती थी। आसपास के जल स्रोतों में भरपूर पानी रहता था। लेकिन बारिश के नहीं होने से वर्तमान में इस समय दोनों बांधों में ही एक भी बूंद पानी नहीं है।
बांध के पेटे में दूर-दूर तक फैले दिखाई देने वाले खेतों में छोटी-छोटी झोपड़ियां बन गई है। इनमें किसान परिवार के साथ रहते हैं। जो दिन भर सब्जियों की तुड़ाई करते हैं। इसके अलावा फसलों की देखभाल करते हैं। रात के समय फसलों की पिलाई का कार्य भी करते हैं।