यहां के दो हिन्दू-मुस्लिम परिवारों की, जो धर्म की सीमाएं पार कर ना केवल रेशम की डोरी से बंधे स्नेह के संसार को सहेजे हुए हैं, बल्कि एक-दूजे के त्योहारों में भी शिरकत कर खुशी मनाते हैं। सौहाद्र्र का यह संदेश करौली में पुरानी सब्जी मण्डी के समीप के सेवासिंह की गली निवासी बाबू खान और खेल संकुल के समीप के निवासी विकास भारद्वाज के परिवार दे रहे हैं।
बाबू खान की दो पुत्रियां जीनत (21) और सोनम (20) प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विकास भारद्वाज के पुत्र कृतार्थ उर्फ किन्शू भारद्वाज (17) की कलाई को स्नेह के बंधन से सजाती हैं। मुंहबोले भाई-बहनों के बीच प्रगाढ़ स्नेह है, जिसका नमूना यह है कि ना केवल रक्षाबंधन पर बल्कि होली, दीपावली की भैयादूज के मौके पर भी दोनों बहनें मुंहबोले भाई किन्शू के माथे को कुमकुम के टीके से सजाती हैं। वहीं विकास और उनकी पत्नी सरोज भी जीनत व सोनम को पुत्री का दुलार देती हैं।
स्नेह से बड़ा कोई धर्म नहीं
किन्शू की मां सरोज बतातीं हैं कि पहले वे भी सेवासिंह की गली में रहते थे, तब उनका इकलौता पुत्र किन्शू चार वर्ष का था। पड़ोस में रहने वाली जीनत का उनके यहां आना-जाना था। तभी से जीनत किन्शू को रक्षाबंधन पर राखी बांधती आ रही है।
उसके बाद सोनम भी रक्षाबंधन पर किन्शू को राखी बांधने लगी। सरोज कहती हैं कि दुनिया में स्नेह से बड़ा कोई धर्म नहीं है। 12वीं कक्षा उत्तीर्ण कर नीट की तैयारी कर रहा किन्शू कहता है कि कभी दोनों बहनें राखी पर उसके घर आती हैं तो कभी वह उनके यहां जाता है। अन्य त्योहारों के मौकों पर भी उनका आना-जाना रहता है।
वहीं बाबू खान कहते हैं कि हमारे दोनों परिवारों के बीच वर्षों से सौहाद्र्र के रिश्ते हैं। दोनों पुत्रियों जीनत, सोनम मुंहबोले भाई किन्शू को रक्षाबंधन पर राखीं बांधती हैं। सोनम, जीनत कहती हैं कि किन्शू हमारा प्यारा भाई है और हम उससे बहुत स्नेह रखती हैं। वहीं विकास भारद्वाज कहते हैं कि जीनत-सोनम ने उन्हें बेटी की कमी को पूरा किया है।