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राहत के इंतजार में ही झुलस जाती हैं उम्मीदें

locationकरौलीPublished: Dec 10, 2019 01:09:47 pm

Submitted by:

Dinesh sharma

करौली. यूं तो सरकार की ओर से विकास के लम्बे-चौड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन करौली जिले में अग्नि हादसों के बाद हालातों को काबू में करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।

राहत के इंतजार में ही झुलस जाती हैं उम्मीदें

राहत के इंतजार में ही झुलस जाती हैं उम्मीदें

करौली. यूं तो सरकार की ओर से विकास के लम्बे-चौड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन करौली जिले में अग्नि हादसों के बाद हालातों को काबू में करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में दूरदराज इलाकों में आग लगने पर राहत के इंतजार में ही लोगों की उम्मीदें झुलस जाती हैं।
दिल्ली में एक दिन पहले फैक्ट्रियों में लगी आग में 43 जनों की जान जाने के बाद आग पर काबू पाने के लिए दमकल सहित अन्य संसाधनों की कमी यहां अखरने लगी है। जिला मुख्यालय पर तो छोटी-बड़ी तीन दमकल हैं, लेकिन सपोटरा, मण्डरायल, नादौती उपखण्ड मुख्यालय पर दमकल ही नहीं हैं।
इसी प्रकार जिले के बड़े कस्बे मासलपुर, कुडग़ांव, करणपुर, गुढ़ाचन्द्रजी, श्रीमहावीरजी आदि में भी दमकल की दरकार है। दमकलों की कमी से इन इलाकों में आग की घटना होने पर जिला मुख्यालय व हिण्डौन से ही दमकलों को दौड़ लगानी पड़ती है। जिले के सबसे बड़े हिण्डौन उपखण्ड में भी महज एक दमकल है। वहीं टोडाभीम में एक छोटी दमकल आग बुझाने को भागती है। अधिक दूरी पर पहुंचने में दमकलों को समय लग जाता है। ऐसे में कई जगह तो इनके पहुंचने से पहले नुकसान हो चुका होता है।
करौली शहर के अंदर संकरे रास्तों के कारण दमकल का पहुंचना तक मुश्किल भरा होता है। इन हालातों से जिलेवासी अग्नि हादसों के दौरान भगवान के भरोसे ही हैं।

जिला मुख्यालय पर दमकलों का गणित
करौली नगरपरिषद में फायर स्टेशन पर वर्तमान में तीन दमकल हैं, जिनमें एक छोटी दमकल की क्षमता ढाई हजार लीटर है, वहीं दो बड़ी दमकलों में से एक की 8 हजार लीटर तो दूसरी की 12 हजार लीटर है। छोटी दमकल में लीकेज के चलते पानी निकलने की समस्या है।
नहीं है पर्याप्त स्टाफ
नगरपरिषद सूत्र बताते हैं करौली के फायर स्टेशन पर पर्याप्त स्टाफ ही नहीं है। ऐसे में अन्य अनुभवी कार्मिकों से काम लेना पड़ता है। सूत्र बताते हैं कि एक गाड़ी पर प्रत्येक पारी में वाहन चालक सहित चार कार्मिक होने चाहिए। लेकिन जिला मुख्यालय के फायर स्टेशन पर महज चार ही फायर मैन हैं। ऐसे में जरुरत पडऩे पर अन्य कार्मिकों को लगाना पड़ता है। हिण्डौन में भी महज एक ही दमकल है ऐसे में जरुरत पडऩे पर जिला मुख्यालय से ही दमकलों को दौड़ लगानी पड़ती है। जानकारों का कहना है कि तीन पारियों के मुताबिक कार्मिकों की नियुक्ति होने पर बेहतर व्यवस्था बनाई जा सकती है।
होती दमकल तो बच जाता नुकसान
पिछले माह ही करणपुर कस्बे के 33 केवी सब ग्रिड स्टेशन पर करीब 30 लाख रुपए कीमत के पावर ट्रांसफॉर्मर में आग लग गई थी। सूचना पर 60 किलोमीटर दूर से करौली से दमकल पहुंची, लेकिन इस बीच ट्रांसफॉर्मर धधकता रहा। इससे ना केवल विद्युत निगम को नुकसान हुआ, बल्कि इलाके के तीन दर्जन से अधिक गांवों की बिजली आपूर्ति भी ठप हो गई थी।
मच गई थी बाजार में अफरा-तफरी
गत वर्ष करौली के व्यस्ततम सदर बाजार की एक गली में स्थित कटला की दुकान में आग लग गई। संकरे रास्ते के कारण बड़ी दमकल का पहुंचना मुश्किल हो गया। ऐसे में दुकान में लाखों रुपए का नुकसान हो गया, वहीं घटना से इलाके में अफरा-तफरी मच गई।
तंग गलियों में परेशानी तो रहती है
सूचना पर करौली सहित ग्रामीण क्षेत्र में दमकल भेजी जाती है। लेकिन करौली शहर सहित अन्य कस्बों में छोटी व तंग गलियों से परेशानी आती है। एक दमकल लीकेज भी है, जिसे ठीक कराया जाएगा। कुछ पद रिक्त भी हैं।
शिम्भुलाल मीना आयुक्त करौली
कर लेते हैं व्यवस्था
करौली, हिण्डौन, टोडाभीम में दमकल हैं, जिनके जरिए आग की घटनाओं पर काबू पा लिया जाता है। यह बात सही है कि सभी जगह दमकल नहीं हैं। फिर भी उपलब्ध संसाधनों के जरिए बेहतर तरीके से प्रबंध किए जाते हैं। औद्योगिक इकाइयों में स्वयं फायर फाइटिंग सिस्टम लगाना चाहिए।
सुदर्शनसिंह तोमर, अतिरिक्त जिला कलक्टर, करौली
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