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करौली में नर्सरियों की मुस्कुराहट पर भी कोरोना का हुआ ऐसा वार

locationकरौलीPublished: Jun 02, 2020 08:43:57 pm

Submitted by:

Dinesh sharma

नर्सरी संचालक मायूसदूसरे शहरों तक के लोग ले जाते हैं पौधेप्रतिवर्ष होता है कि 30 से 40 लाख का कारोबार

करौली में नर्सरियों की मुस्कुराहट पर भी कोरोना का हुआ ऐसा वार

करौली में नर्सरियों की मुस्कुराहट पर भी कोरोना का हुआ ऐसा वार

करौली. पिछले करीब एक दशक में यहां नर्सरियों के पनपे नए रोजगार के व्यवसाय को भी कोरोना के कहर ने झकझौर कर रख दिया है। कोरोना के कहर के आगे नर्सरियां मुरझा रही हैं। इससे नर्सरी संचालकों के चेहरों पर भी उदासी छाई है।
मार्च-अप्रेल माह के सीजन में लाखों रुपए के पौधों की नर्सरियों से बिक्री हो जाती थी, लेकिन इस बार लॉक डाउन के बीच थमे जनजीवन ने नर्सरी संचालकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। नतीजतन ना केवल लाखों रुपए की बिक्री प्रभावित हुई, बल्कि हजारों रुपए के पौधे जमीं पर धरे-धरे ही नष्ट हो गए।
वहीं नर्सरियों में पनप रहे पौधों को बचाने की खातिर नर्सरी संचालकों को अधिक मेहनत कर उन्हें बचाने के भी जतन करने पड़ रहे हैं। हालांकि उन्हें अब आगामी मानसून के दौरान व्यवसाय के कुछ ढर्र्रे पर लौटने की उम्मीद है, लेकिन उसमें भी अभी बीज और थैली का संकट बना हुआ है।
तेजी से उभरा व्यवसाय
करौली जिला मुख्यालय पर गत एक दशक के दौरान आधा दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी नर्सरियां नए व्यवसाय के रूप में तैयार होकर उभरी हंै। इन नर्सरियों के सहारे दर्जनों परिवारों के अलावा कई मजदूर भी रोजगार से जुड़ गए। धीरे-धीरे यह व्यवसाय तेजी से पनपा और एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष 30 से 40 लाख रुपए तक का व्यवसाय नर्सरियों के सहारे होने लगा।
करौली की नर्सरियों के विकास की कहानी इसी तथ्य से जुड़ी है कि यहां से दूरदराज शहरों के लोग फलदार, छायादार, फूलदार और सजावटी पौधे लेकर अपने घरों को जाते हैं। विशेष रूप से जयपुर, आगरा, बयाना, भरतपुर, गंगापुरसिटी, तक यहां से पौधे ले जाए जाते हैं।
इसलिए करते लोग पसंद
यहां की नर्सरियों में फलदार, फूलदार, छायादार पौधों के अलावा घरों में सजावट के लिए विभिन्न किस्मों के सजावटी पौधे भी मिलते हैं। नर्सरियों में ये पौधे छोटे गमले से लेकर बड़े गमले तक में बिकते हैं।
यात्रियों से रहती है बड़ी उम्मीद
जिला मुख्यालय की अधिकांश नर्सरियां कैलादेवी मार्ग पर सड़क किनारे स्थित हैं। मार्च-अप्रेल माह में कैलामाता का प्रसिद्ध चैत्र लक्खी मेला भरता है, जिसमें वैसे तो 30 से 40 लाख श्रद्धालु माता के दर्शनों का आते हैं, वहीं इनमें लाखों की संख्या में वाहनों से श्रद्धालु कैलादेवी पहुंचते हैं। वापसी में अनेक श्रद्धालु इन नर्सरियों से पौधे लेकर जाते हैं।
इस कारण नर्सरी संचालकों को मार्च-अप्रेल माह में अच्छी बिक्री की उम्मीद रहती है। लेकिन इस बार लॉक डाउन के कारण मेला स्थगित हो गया।

नष्ट हो गए 50 हजार के पौधे
कैलादेवी मार्ग स्थित करीब ढाई दशक से नर्सरी संचालित कर रहे पारस नर्सरी के संचालक अजय सैनी, विजय सैनी बताते हैं कि मार्च-अप्रेल माह के दौरान इस बार करीब दो लाख रुपए की बिक्री प्रभावित हो गई। वहीं पौधों का उठाव नहीं होने से करीब 50 हजार रुपए के पौधे भी धरे-धरे नष्ट हो गए। अब संकट यह भी है कि आगामी सीजन के लिए बीज, थैली व मिट्टी नहीं आ पा रही, जो बाहर से आती है।
अजय के अनुसार आन्ध्र प्रदेश, कलकत्ता से भी पौधे, बीज मंगाए जाते हैं, लेकिन इस बार परिवहन सेवा के बंद होने से वे भी नहीं आ पाए। मार्च माह में पौधे तैयार किए जाते हैं, लेकिन सब तैयारी धरी रह गई। पौधों की बढ़ती मांग के मद्देनजर वे बारिश के दौरान ना केवल करौली बल्कि गंगापुरसिटी, हिण्डौनसिटी तक में भी अस्थायी नर्सरी लगाते हैं। इसी प्रकार नर्सरी संचालक मोहरसिंह, रामबाबू, महेश, जगदम्बा नर्सरी के योगेन्द्र आदि बताते हैं कि कोराना के कारण लगे लॉक डाउन से उनका व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सभी नर्सरियों में लाखों रुपए का व्यवसाय ठप हो गया। मानसून के मुख्य सीजन में भी रोजगार पर इसका असर पड़ेगा।
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