वर्ष 2010-11 के बजट में करौली को आगार का तोहफा मिला, तो लोगों को परिवहन सुविधा बढऩे और रोडवेज की बेहतर सेवाएं मिलने की उम्मीद जगी थी। इन उम्मीदों को उस समय और भी पंख लगे जब आधे-अधूरे रोडवेज डिपो का उद्घाटन भी दिसम्बर 2012 में तत्कालीन परिवहन मंत्री द्वारा कर दिया गया। लेकिन उच्च स्तर पर पहल के अभाव में अब तक डिपो का स्वतंत्र संचालन नहीं हो सका है। इससे लोगों की उम्मीदें एक दशक बाद भी अधूरी हैं।
रोडवेज के उच्चाधिकारियों ने डिपो के लिए यहां स्टाफ भी स्वीकृत कर दिया। डिपों के लिए लाखों रुपए खर्च कर निर्माण कार्य भी केन्द्रीय रोडवेज बस स्टैण्ड पर करा दिया गया, लेकिन डिपो का संचालन करौली से हो ही नहीं पाया। और तो और यहां डिपो के लिए लगाए गए मुख्य प्रबंधक के पद को भी समाप्त कर हिण्डौन के ही अधीन कर दिया गया। धीरे-धीरे यहां के स्टाफ को हिण्डौन बुला लिया। सरकार की इस अनदेखी के चलते करौलीवासियों की उम्मीदें धुमिल हो गईं।
करौली आगार के नाम पर गत वर्षों में दो दर्जन से अधिक बसें भी आवंटित की गई थी, लेकिन इनमें से अधिकांश बसों का इस्तेमाल हिण्डौन डिपो कर रहा है। रोडवेज सूत्रों के अनुसार यहां के करीब 18 शिड्यूल में से महज करीब 5 शिड्यूल पर ही बसों का संचालन कर दिया गया है। इससे धीरे-धीरे बसों का संचालन भी कम हो गया।
रोडवेज डिपो के लिए केन्द्रीय रोडवेज बस स्टैण्ड परिसर में वर्कशॉप, डीजल टेंक, कार्यालय के लिए भवन आदि का निर्माण कराया गया। वर्कशॉप व डीजल टैंक सहित नल फीटिंग व बस स्टैण्ड के मध्य दीवार निर्माण का कार्य अधूरा है। इन कार्यों के अधूरा रहने से ही अब तक डिपो का स्वतंत्र संचालन नहीं हो सका है।
करौली रोडवेज बस स्टैण्ड से बसों का संचालन हो रहा है। डिपो के स्वतंत्र संचालन का मामला तो रोडवेज मुख्यालय का है। कार्मिकों को व्यवस्था बतौर लगाया जाता है। हैड ऑफिस से कम्पनी का कॉन्टेक्ट खत्म होने के कारण डीजल टैंकर खोलने की बात है।
विष्णुकुमार वर्मा, मुख्य प्रबंधक, रोडवेज डिपो हिण्डौनसिटी