रोडवेज निगम के सूत्र बताते हैं कि करौली आगार की पृथक से बसें आवंटित हैं, कार्मिक भी हैं। आय-व्यय का ब्यौरा भी पृथक से है। बावजूद इसके करौली आगार का संचालन पूरी तरह हिण्डौन आगार के अधीन है। वहीं से बसों के शिड्युल आदि तय किए जाते हैं, जिसके चलते करौली के नाम से आवंटित बसों का भी पूरी तरह क्षेत्र के लोगों को लाभ नहीं मिल पाता है। असल में पहले सरकार स्तर पर उचित राजनीतिक पहल के अभाव में वर्ष 2012 में उद्घाटन के बाद से ही जनप्रतिनिधियों ने खास रुचि नहीं दर्शाई। नतीजतन कुछ वर्ष पहले यहां के मुख्य प्रबंधक को हटाते हुए हिण्डौन के अधीन ही करौली डिपो को कर दिया गया। वहीं धीरे-धीरे यहां से कर्मचारियों को भी हिण्डौन डिपो में ही बुला लिया गया।
रोडवेज सूत्र बताते हैं कि करौली डिपो के नाम से एक दर्जन से अधिक बसें आवंटित हैं, लेकिन इनमें से महज 5-6 बसों का ही करौली बस स्टैण्ड से यात्रियों को लाभ मिल पा रहा है। ऐसे में ना केवल लम्बी दूरी की बसों का यहां से अभाव है, बल्कि जिले के बड़े कस्बों के लिए भी पर्याप्त रोडवेज बस सेवा नहीं है। वर्तमान में मासलपुर कस्बे के लिए तो कोई बस संचालित ही नहीं, जबकि करणपुर के दो बसें, मण्डरायल तथा सपोटरा के लिए महज एक-एक बस संचालित हैं। इनमें से एक भी बस करौली डिपो की नहीं है, बल्कि अन्य डिपो की हैं।
वहीं लम्बी दूरी की बसों की स्थिति देखें तो करौली से सौरोजी के लिए वर्तमान में बस ही नहीं है। वहीं प्रसिद्ध आस्थाधाम कैलादेवी के लिए सुबह जल्दी यात्रियों का जाना शुरू हो जाता है, लेकिन स्थानीय बस स्टेण्ड से पहली बस की रवानगी ही सुबह 8 बजे है।