अभयारण्य क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में यह कवायद चल रही है। हालांकि अब अगर समय पर वन विभाग को बजट उपलब्ध हो जाता है तो आगामी वर्षों में अभयारण्य क्षेत्र का विकास होगा। वहीं बाघों का यहां ठहराव बढ़ सकेगा, जिससे अभयारण्य क्षेत्र में अब देशी-विदेशी सैलानी भ्रमण करते नजर आएंगे।
गौरतलब है कि सवाईमाधोपुर के रणथम्भौर नेशनल पार्क से जुड़ा रणथम्भौर बाघ परियोजना (द्वितीय) कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र 774 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। जो वन्य जीवों के लिए हर प्रकार से अनुकूल माना जाता है। कैलादेवी अभयारण्य को विकसित करने के लिए केन्द्र सरकार ने टाइगर हैबिटेट जोन घोषित किया था। कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र बाघों के लिए हर दृष्टि से अनुकूल है। रणथम्भौर अभयारण्य को कॉरिडोर बनाकर टाइगर हेबिटेट जोन विकसित करने की भी मंशा इसी उद्देश्य से थी, लेकिन लम्बे समय तक इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। गत वर्ष सफारी रूटों की अनुमति और अब इसी दिशा में चीतल लाने की अनुमति मिलने से उम्मीद है कि अभयारण्य क्षेत्र का विकास हो सकेगा।
गौरतलब है कि सवाईमाधोपुर के रणथम्भौर नेशनल पार्क से जुड़ा रणथम्भौर बाघ परियोजना (द्वितीय) कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र 774 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। जो वन्य जीवों के लिए हर प्रकार से अनुकूल माना जाता है। कैलादेवी अभयारण्य को विकसित करने के लिए केन्द्र सरकार ने टाइगर हैबिटेट जोन घोषित किया था। कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र बाघों के लिए हर दृष्टि से अनुकूल है। रणथम्भौर अभयारण्य को कॉरिडोर बनाकर टाइगर हेबिटेट जोन विकसित करने की भी मंशा इसी उद्देश्य से थी, लेकिन लम्बे समय तक इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। गत वर्ष सफारी रूटों की अनुमति और अब इसी दिशा में चीतल लाने की अनुमति मिलने से उम्मीद है कि अभयारण्य क्षेत्र का विकास हो सकेगा।
तीन सफारी रूटोंकी पहले मिल चुकी है अनुमति
वन विभाग सूत्रों के अनुसार कैलादेवी वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र में तीन सफारी रूटों पर पर्यटन शुरू करने की गत वर्ष स्वीकृति मिली थी, जिससे अभयारण्य क्षेत्र में पर्यटकों के आने और इसके विकसित होने की उम्मीद जागी। इसी कवायद के तहत अब केन्द्र सरकार स्तर से अभयारण्य क्षेत्र में डेढ़ सौ चीतल लाने की वन विभाग को अनुमति मिली है। गौरतलब है कि गत वर्ष प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ओर से अभयारण्य क्षेत्र के खोड़ा का नाला से 45 है. एनक्लोजर से नींदर तालाब, बीरम की ग्वाड़ी से महेश्वरा धाम से आशाकी तथा कूरतकी ग्वाड़ी से बंका का नाला तक तीन सफारी रूट शुरू करने के आदेश जारी किए गए थे।
वन विभाग सूत्रों के अनुसार कैलादेवी वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र में तीन सफारी रूटों पर पर्यटन शुरू करने की गत वर्ष स्वीकृति मिली थी, जिससे अभयारण्य क्षेत्र में पर्यटकों के आने और इसके विकसित होने की उम्मीद जागी। इसी कवायद के तहत अब केन्द्र सरकार स्तर से अभयारण्य क्षेत्र में डेढ़ सौ चीतल लाने की वन विभाग को अनुमति मिली है। गौरतलब है कि गत वर्ष प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ओर से अभयारण्य क्षेत्र के खोड़ा का नाला से 45 है. एनक्लोजर से नींदर तालाब, बीरम की ग्वाड़ी से महेश्वरा धाम से आशाकी तथा कूरतकी ग्वाड़ी से बंका का नाला तक तीन सफारी रूट शुरू करने के आदेश जारी किए गए थे।
5 हैक्टेयर में एनक्लोजर बनाने की तैयारी
भरतपुर से चीतल लाने की अनुमति मिलने के बाद अब वन विभाग अधिकारी अभयारण्य क्षेत्र में एनक्लोजर बनाने की कवायद में जुटे हैं। चीतलों को पैंथर का शिकार होने से बचाने के उद्देश्य से एनक्लोजर बनाने की योजना है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि एनक्लोजर निर्माण के लिए करीब एक करोड़ रुपए की जरुरत होगी, जिसके लिए विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं। करीब पांच हैक्टेयर क्षेत्रफल में एनक्लोजर बनाने की तैयारी है। इसके साथ ही अभयारण्य क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रेक्चर विकसित करने को भी बजट की आवश्यकता है। सरकार की ओर से समय पर बजट उपलब्ध होता है तो जल्द ही अभयारण्य क्षेत्र विकसित हो सकेगा। गौरतलब है कि अभयारण्य क्षेत्र में वर्तमान में बाघों का मुवमेंट बना हुआ है। साथ ही सांभार, चीतल, सियागोश, भेडि़ए सहित अन्य वन्यजीव भी हैं। रणथम्भौर में बाघों की बढ़ती संख्या के बीच पिछले वर्षों में कई बाघों ने कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र की ओर रुख किया है। वर्तमान में भी यहां टाइगरों का मुवमेंट बना हुआ है।
होटल व्यवसायियों की हो चुकी बैठक
तीन सफारी रूटों की अनुमति मिलने के बाद गत वर्ष अगस्त माह में तत्कालीन जिला कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग ने अभयारण्य क्षेत्र को लेकर गहरी रुचि दर्शाई। उन्होंने यहां होटल व्यवसायियों की बैठक ली, जिसमें कई बड़े होटल व्यवसायी शामिल हुए थे। सिहाग ने उन्हें जिले की प्राकृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों, कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र आदि से रू-ब-रू कराते हुए जिले में अपना व्यवसाय शुरू कर यूनिट स्थापित करने की बात कही थी। इस पर होटल व्यवसायियों ने भी अपने सुझाव देते हुए सहयोग का विश्वास दिलाया था।
इनका कहना है.........
कैलादेवी वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र में तीन सफारी रूटों पर पर्यटन शुरू करने की स्वीकृति गत वर्ष मिली थी। इसी क्रम में अब केन्द्र सरकार स्तर से भरतपुर केवलादेव अभयारण्य से डेढ़ सौ चीतल लाने की अनुमति मिल गई है, जिन्हें रखने के लिए अभयारण्य क्षेत्र में एनक्लोजर बनाया जाएगा, जिसके बजट के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाए जा रहे हैं।
भरतपुर से चीतल लाने की अनुमति मिलने के बाद अब वन विभाग अधिकारी अभयारण्य क्षेत्र में एनक्लोजर बनाने की कवायद में जुटे हैं। चीतलों को पैंथर का शिकार होने से बचाने के उद्देश्य से एनक्लोजर बनाने की योजना है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि एनक्लोजर निर्माण के लिए करीब एक करोड़ रुपए की जरुरत होगी, जिसके लिए विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं। करीब पांच हैक्टेयर क्षेत्रफल में एनक्लोजर बनाने की तैयारी है। इसके साथ ही अभयारण्य क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रेक्चर विकसित करने को भी बजट की आवश्यकता है। सरकार की ओर से समय पर बजट उपलब्ध होता है तो जल्द ही अभयारण्य क्षेत्र विकसित हो सकेगा। गौरतलब है कि अभयारण्य क्षेत्र में वर्तमान में बाघों का मुवमेंट बना हुआ है। साथ ही सांभार, चीतल, सियागोश, भेडि़ए सहित अन्य वन्यजीव भी हैं। रणथम्भौर में बाघों की बढ़ती संख्या के बीच पिछले वर्षों में कई बाघों ने कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र की ओर रुख किया है। वर्तमान में भी यहां टाइगरों का मुवमेंट बना हुआ है।
होटल व्यवसायियों की हो चुकी बैठक
तीन सफारी रूटों की अनुमति मिलने के बाद गत वर्ष अगस्त माह में तत्कालीन जिला कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग ने अभयारण्य क्षेत्र को लेकर गहरी रुचि दर्शाई। उन्होंने यहां होटल व्यवसायियों की बैठक ली, जिसमें कई बड़े होटल व्यवसायी शामिल हुए थे। सिहाग ने उन्हें जिले की प्राकृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों, कैलादेवी अभयारण्य क्षेत्र आदि से रू-ब-रू कराते हुए जिले में अपना व्यवसाय शुरू कर यूनिट स्थापित करने की बात कही थी। इस पर होटल व्यवसायियों ने भी अपने सुझाव देते हुए सहयोग का विश्वास दिलाया था।
इनका कहना है.........
कैलादेवी वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र में तीन सफारी रूटों पर पर्यटन शुरू करने की स्वीकृति गत वर्ष मिली थी। इसी क्रम में अब केन्द्र सरकार स्तर से भरतपुर केवलादेव अभयारण्य से डेढ़ सौ चीतल लाने की अनुमति मिल गई है, जिन्हें रखने के लिए अभयारण्य क्षेत्र में एनक्लोजर बनाया जाएगा, जिसके बजट के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाए जा रहे हैं।
डॉ. रामानन्द भाकर, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना (द्वितीय) करौली