अंगूरी देवी ने बताया कि वर्ष 1955 में उनका विवाह वस्त्र व्यवसायी ईश्वरलाल अग्रवाल से हुआ। तब से पारंपरिक तौर पर परिवार की महिलाओं के साथ करवा चौथ माता का व्रत व पूजा कर रही हैं। उस दौरान महिलाएं करवा चौथ का निर्जल व्रत रखती और शाम को सामान्य तौर पर पूजा कर चंद्रमा को अध्र्य देकर कर उपवास खोलती थी। उस दौर में घर के पुरुष के अपने कामकाज में व्यस्त रहते थे। ऐसे पति के हाथ से पानी पीने की चलन नहीं था। अंगूरी देवी ने बताया पहले पूजा में चीनी के करवों का प्रचलन नहीं था।
वर्ष 1980 के बाद के बाद करवा चौथ की पूजा में नवाचार आया है। अब इस व्रत को पत्नियों के साथ पुरुष भी करने लगे हैं। उन्होंने बताया मिट्टी के करवों में पहले अन्न और जल क्षेत्र की परम्पराओं तौर पर भरा जाता था। अब सास, ननद व जेठानी को उपहार देने की चलन बन गया है। वहीं महिलाएं चलनी में दीपक रख कर चांद के समक्ष पति को खड़ा कर दर्शन करती हैं। उस समय ऐसा नहीं होता था। इधर अंगूरी देवी के पति ईश्वरलाल ने बताया कि भारतीय संस्कृति व वृत-त्योहारों के साहित्य आने के बाद से पूजा और व्रत की शैली में बदलाव हुुआ है।