कैलादेवी अभयारण्य में अब तक टाइगरों का टोटा रहने की मुख्य वजह यहां बाघिन का नहीं होना था। विशेषज्ञ मानते हैं कि बाघिन के यहां ठिकाना नहीं बनाने से टाइगर यहां रुकने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे। अब पिछले एक वर्ष से लगातार यहां मादा बाघिन के पगमार्क देखे जा रहे हैं। कई बार बाघिन की कर्मचारियों को झलक भी दिखी है। माना जा रहा है कि बाघ टी-७२ को कैलादेवी अभयारण्य खासा रास आ रहा है। अब बाघ-बाघिन का जोड़ा होने से इनके यहां रुकने की उम्मीद बलवती हुईहै। वन विभाग का मानना है कि अभयारण्य में बाघ-बाघिन का जोड़ा ठहरता है तो यहां टाइगरों का कुनबा बढ़ सकता है।
नहीं ठहर रहा ‘तूफान’
अभयारण्य में अक्सर बाघ टी-८० भी देखा गया है, लेकिन इसकी आमद कभी कभार ही ट्रेक हो पाती है। विभाग के अधिकारियों का मानना है कि यह सवाईमाधोपुर के रणथंभौर से यहां आता है और फिर वापस चला जाता है। इसने अभी तक इस अभयारण्य को अपना स्थाई ठिकाना नहीं बनाया है। रणथंभौर और कैलादेवी अभयारण्य में चक्कर काटने वाले इस बाघ के स्वभाव के कारण अब कर्मचारी इसे ‘तूफानÓ नाम से पुकारने लगे हैं।
अभयारण्य में अक्सर बाघ टी-८० भी देखा गया है, लेकिन इसकी आमद कभी कभार ही ट्रेक हो पाती है। विभाग के अधिकारियों का मानना है कि यह सवाईमाधोपुर के रणथंभौर से यहां आता है और फिर वापस चला जाता है। इसने अभी तक इस अभयारण्य को अपना स्थाई ठिकाना नहीं बनाया है। रणथंभौर और कैलादेवी अभयारण्य में चक्कर काटने वाले इस बाघ के स्वभाव के कारण अब कर्मचारी इसे ‘तूफानÓ नाम से पुकारने लगे हैं।
नहीं हुआ नामकरण
अभयारण्य अब टी-७२ को रास आने लगा है। बाघिन टी-९२ का भी लगातार मूवमेंट में है। बाघ टी-८० भ्रमणशील रहता है। बाघिन को विभागीय नाम नहीं दिया है। फिर भी इसे लोग सुंदरी के नाम से जानते हैं।
अभयारण्य अब टी-७२ को रास आने लगा है। बाघिन टी-९२ का भी लगातार मूवमेंट में है। बाघ टी-८० भ्रमणशील रहता है। बाघिन को विभागीय नाम नहीं दिया है। फिर भी इसे लोग सुंदरी के नाम से जानते हैं।
एक साल से दिख रहा मूवमेंट, बढ़ सकता है कुनबा
‘अभयारण्य में बाघ और बाघिन का मूवमेंट लगातार देखा जा रहा है। यह पिछले एक साल से यहां रह रहे हैं। ऐसे में कुनबा बढऩे की उम्मीद की जा सकती है।
– सुरेश मिश्रा एसीएफ वाइल्ड लाइफ करौली
‘अभयारण्य में बाघ और बाघिन का मूवमेंट लगातार देखा जा रहा है। यह पिछले एक साल से यहां रह रहे हैं। ऐसे में कुनबा बढऩे की उम्मीद की जा सकती है।
– सुरेश मिश्रा एसीएफ वाइल्ड लाइफ करौली
नजर आई बाघिन
बाघों की ट्रेकिंग कर रहे कर्मचारियों को कई बार बाघिन की झलक दिखी है। हाल ही में १९, २०, २१, २५, २९ एवं ३१ दिसम्बर को बाघिन की छाया कर्मचारियों ने देखी। वहीं टी-७२ की १६, १७, १८, १९, २० एवं २१ दिसम्बर को कर्मचारियों ने छाया देखी। इसके अलावा टी-८० के १९, २०, २१, २७ एवं २८ दिसम्बर को कर्मचारियों ने पगमार्क लिए।
बाघों की ट्रेकिंग कर रहे कर्मचारियों को कई बार बाघिन की झलक दिखी है। हाल ही में १९, २०, २१, २५, २९ एवं ३१ दिसम्बर को बाघिन की छाया कर्मचारियों ने देखी। वहीं टी-७२ की १६, १७, १८, १९, २० एवं २१ दिसम्बर को कर्मचारियों ने छाया देखी। इसके अलावा टी-८० के १९, २०, २१, २७ एवं २८ दिसम्बर को कर्मचारियों ने पगमार्क लिए।
बता दें कि कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य करौली में स्थित है जो राजस्थान मध्य प्रदेश सीमा से लगा हुआ है ये वन्य जीव अभ्यारण 676.40 वर्ग किमी के एक क्षेत्र में फैला हुआ है। इस अभयारण्य के पश्चिमी किनारे पर बनास नदी बहती है जबकि दक्षिण – पूर्व दिशा में चम्बल नदी का प्रवाह है।
Read also: जनवरी 2015 तक रणथम्भौर में बाघो की संख्या 57 थी, हर बाघ को 10 एरिया चाहिए तो नए ठिकाने की तलाश में कैलादेवी अभयारण्य में घुस रहे वे ये अभयारण्य, जो केला देवी मंदिर के नाम पर है दर्शकों को प्रकृति के लिए एक सुंदर परिदृश्य प्रस्तुत करता है। इस अभयारण्य में चिंकारा, जंगली सुअरों और सियार के अलावा बाघ, तेंदुओं , स्लॉथ भालू, हाइना, भेड़ियों और साम्भर को आसानी से विचरण करते हुए देखा जा सकता है।
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