करौली

हिण्डौन में कृष्ण के बाल रूप में हैं भगवान हरदेव

Lord Hardev is in the child form of Krishna in Hindaun.हरदेव मंदिर में वल्लभ सम्प्रदाय परिपाटी से होती पूजाकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

करौलीAug 18, 2022 / 08:51 pm

Anil dattatrey

हिण्डौन में कृष्ण के बाल रूप में हैं भगवान हरदेव


हिण्डौनसिटी. आम तौर कृष्ण मंदिरों में भगवान कृष्ण की राधा के साथ युगल प्रतिमाएं होती हैं। लेकिन हिण्डौन के हरदेवजी के मंदिर में भगवान कृष्ण एकल में विराजित हैं। हरदेवजी को भगवान कृष्ण का सात वर्ष की आयु का स्वरूप माना गया है। वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा परिपाटी के प्राचीन मंदिर मेंं बिना राधा रानी के भगवान कृ़ष्ण की बाल रूप की पूजा की जाती हैं। सम्प्रदाय की परिपाटी पर हरदेवजी की दिन में आठ बार आरती की जाती हैं। हरदेवजी प्रतिमा में नाथद्वारा के श्रीनाथजी के स्वरूप का दरस होता है।
बुजुर्गों के अनुसार हरदेवजी का मंदिर करीब 225 वर्ष पुराना मंदिर है। मुगलकाल में औरंगजेब के शासन में ब्रजक्षेत्र के मंदिरों में विराजित कृष्ण प्रतिमाओं बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया। उस दौरान भगवान हरदेवजी की प्रतिमा का अन्य प्रतिमाओं के साथ जयपुर रियासत में आगमन हुआ था। जहां से प्रतिमा को रियासत की निजामत हिण्डौन लाकर नीम का बाजार स्थित हवेली में विराजित किया गया। उस दौरान जयपुर रियासत के तत्कालीन नरेश ने गोस्वामी परिवार को भगवान हरदेवजी की पूजा सेवा का जिम्मा सौपा था। गंगाप्रसाद गोस्वामी के बाद से पूजा कार्य पीढ़ी-दर पीढ़ी जारी है। पूजा के क्रम में मंदिर के सेवायत के तौर पर वर्तमान में चौथी पीढ़ी के सेवायत चंद्रमोहन गोस्वामी में पूजा कर रहे हैं।
कृष्ण के बाल रूप की होती पूजा
इतिहासकारों के अनुसार मुगलकाल में शुरू हुए भक्तिकाल में सूरदास के गुरु कृष्णभक्त वल्लभाचार्य ने कृष्ण भगवान के बाल रूप की संकल्पना की थी। भक्ति काल में कृष्ण की किशोरवय की एकल (ग्वाल-बाल स्वरूप) प्रतिमाएं स्थापित की गई। वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा में स्थापित की गई। कृष्ण भक्ति के भजनकार कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि वर्ष 1565 में वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र विठ्ठलनाथ ने पिता व स्वयं के चार-चार शिष्यों का समूह बना कर अष्टछाप की स्थापना की थी। गुरु विठ्ठलनाथ ने अष्टछाप में शामिल शिष्यों को मंदिरों मेंं भगवान कृष्ण की सभी आठ आरती के समय संकीर्तन व स्तुति भजनों की रचना करने का जिम्मा दिया था। उसी परम्परा के तहत हरदेवजी मंदिर में भी सुबह व शाम चार-चार बार आरतियां होती हैं। भक्तों का समूह मंदिर प्रांगण मेंं आरती गायन करता हैं। मंदिर में आमावस्या व पूर्णिमा के अलावा व्रत-उत्सवों पर भजन संकीर्तन का आयोजन होता है।
प्रदेश में वल्लभ संप्रदाय के छह हैं मंदिर-
कृष्ण बिहारी पाठक ने बताया कि राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टि मार्गीय) के छह बड़े मंदिर हैं। नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर प्रधान पीठ है। इसके अलावा कांकरौली में द्वारिकाधीश मंदिर, नाथद्वारा के विठ्ठलनाथ जी का मंदिर, कोटा में मधुरेशजी का मंदिर, कामां में गोकुलचंद जी व मदनमोहन जी का मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय की पूजा पद्धति के हैं। जहां कृष्ण भगवान के एकल बिग्रह बाल रूप की पूजा की जाती है।

यह है आरती का समय
प्रात: कालीन आरती
मंगला आरती- 5 बजे
धूप आरती- 8.30 बजे
शृंगार आरती-10 बजे
भोग आरती- 11 बजे
सायंकालीन आरती

धूप आरती- 6 बजे
संध्या आरती- 7.30 बजे
उल्लई आरती- 8 बजे
शयन आरती – रात 8.45 बजे


जन्माष्टमी पर आज होगी विशेष पूजा
सेवायत चंद्रमोहन गोस्वामी ने बताया मंदिर में सुबह शाम की नियमित आठ आरतियों के अलावा जन्मोत्सव पर विशेष पूजा होगी। इसके तहत रात 8.30 बजे शयन के बाद रात 9 बजे से 11.30 बजे तक हरदेवजी प्रतिमा का अभिषेक किए जाएगा। रात 12 बजे जन्मोत्सव की आरती की जाएगी। बाद में पंजीरी व पंचामृत को प्रसाद वितरण किया जाएगा।

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