आजीविका चलाने के लिए लोहे के सामान (चिमटा, हंसिया, खुरपी, कुल्हाड़ी, करछली) बनाकर घर-घर बेचते हैं, लेकिन पिछले कई दशकों से लोहा पीटने वाले इन लुहारों के हाथों के बनाए औजार बड़ी-बड़ी कंपनियों की औद्योगिक मशीनों के बनाए सस्ते एवं चमचमाते उत्पादों के सामने दम तोडऩे लगे हैं। सरकार की अनदेखी के कारण आज भी इन परिवारों के पास रहने को घर नहीं है और न ही कमाने खाने के लिए रोजगार का कोई साधन। यहां तक कि देश को आजादी मिले भी 70 साल से अधिक बीत गए, लेकिन आज तक किसी सरकार ने इन गाडिय़ा लुहारों की सुध नहीं ली है सरकारी योजनाओं के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है।
विडंबना यह है कि विकास के नाम पर अरबों रुपयों की जन-कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद इस समुदाय की सुध किसी ने भी नहीं ली जाती। सरकारों ड्राप आऊट बच्चों को शिक्षा से जोडऩे के नाम पर कोरे दावे और कागजी कार्रवाई करती हैं। लेकिन हकीकत में गाडिया लुहारों के बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। क्योंकि आज के बाजार के लिए ये बेमतलब हैं और सरकार के लिए गैरजरूरी। इस समुदाय के बच्चे सड़क पर ही जन्म लेते हैं और सड़क पर ही दम तोडऩे को मजबर हैं।
रीको ने थमाए नोटिस तो गाडिया लुहारों ने किया प्रदर्शन-
महवा रोड़ पर रीको के मोड़ पर डेरा डाल रह रहे भोला, शेरसिंह, महेन्द्र, राजेन्द्र, वीरु, कमला व प्रेमसिंह लुहार ने बताया कि करीब 40 वर्षों से गाडिया लुहारों के 50 से अधिक परिवार यहां रह रहें हैं। लेकिन पिछले दिनों रीको औद्योगिक क्षेत्र के क्षैत्रीय प्रबंधक द्वारा उनके डेरों को अस्थाई अतिक्रमण मान नोटिस थमा दिए गए। साथ ही सात दिन में डेरों को हटाने के निर्देश दिए। अचानक आए सरकारी फरमान ने इन गाडिया लुहारों को परेशानी में डाल दिया है।
लुहार परिवारों ने बताया कि सरकार को पहले उनके परिवारों के पुर्नवास की व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे गर्मी और बारिश के मौसम में उन्हें सिर ढकने के लिए घर मुहैया हो सके। शुक्रवार को परिवारों के साथ तहसील पहुंचे गाडिया लुहारों ने एसडीएम अनूप सिंह को ज्ञापन सौंपकर रीको द्वारा जारी नोटिसों को निरस्त कराने व उनके पुर्नवास के उचित इंतजाम कराने की मांग की।