एनीकटों के निर्माण के पीछे सरकार का उद्देश्य था कि क्षेत्र का जलस्तर बना रहे। इससे क्षेत्र में लोगों को पेयजल की किल्लत का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही मवेशियों को भी पानी मिल सके। लेकिन बारिश की कमी व पानी की आवक के रास्तों में लोगों द्वारा अतिक्रमण कर अवरोध खड़े कर देने से एनीकटों तक पानी नहीं पहुंच रहा है। बारिश अधिक होने पर ही एनीकटों में पानी आता है, जो कुछ ही दिनों में सूख जाता है। अन्य दिनों में यह सूखे पड़े रहते हैं। तीन दशक पहले तक नदी में लालसर, पाल, आमकाजाहिरा आदि गांवों की पहाडिय़ों का पानी आता था। इस कारण सरकार ने एनजीओ के माध्यम से आधा दर्जन से भी अधिक स्थानों पर एनीकटों का निर्माण कराया था।
करोड़ों रुपए की लागत से तैयार एनीकटों में पानी की जगह कीकर-बबूल व झाडिय़ां नजर आती है। साथ ही पानी के अभाव में सूखे पड़े एनीकटों में गंदगी के साथ रेत व मिट्टी जमा है। इससे उनकी भराव क्षमता भी कम हो गई है।
जलधारा प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए बैरवा बस्ती के समीप एनीकट में गुणवत्ता का अभाव होना दिख रहा है। एनीकट एक तरफ से खोखला हो गया है। जिसमें पानी भरकर दीवार क्षतिग्रस्त होने की आशंका है। इससे लगता है कि एनीकट में अनियमितता बरती गई है।
गुढ़ाचन्द्रजी ग्राम पंचायत सचिव कैलाश चंद का कहना है कि कुछ वर्षों से बारिश में लगातार कमी बनी हुई है।इस कारण एनीकट भर नहीं पाते।इन एनीकटों को एक एनजीओ द्वारा बनाया गया है।