हम बात कर रहे हैं राजस्थान में डांग क्षेत्र के भांकरी गांव से निकलकर अहमदाबाद में मार्बल के व्यवसाय में मुकाम हासिल करने वाले सतीश व्यास की। सतीश आज करौली के युवाओं के आइकन बन रहे हैं।
दशकों पहले घर की माली हालत ठीक नहीं होने पर सतीश के पिता प्रकाशचंद और ताऊ अहमदाबाद में बिजनेस स्थापित करने में जुटे थे। पिता की तबियत खराब रहने पर सतीश अपने ताऊ का व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे और रफ्ता-रफ्ता इसकी बारीकियां समझने लगे। सतीश ने १६ वर्ष की कम उम्र में ही अपने आपको मार्बल पॉलिसिंग के व्यवसाय में झोंक दिया।
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साथ ही स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई भी जारी रखी। शुरुआत में सतीश को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ीं। गुजरात के व्यापारी भी सतीश की कच्ची उम्र को देखकर उसे कम आंक रहे थे, लेकिन सतीश कड़ी मेहनत और मजबूत इरादों के साथ व्यवसाय की दुनिया में खासा नाम कमाकर खुद को साबित कर इसकी बुलंदियों को छूआ। आज मार्बल पॉलिसिंग की टॉप-१० कंपनियों में सतीश की धाक है। आज के दौर में सतीश व्यास अपने पिता के मुकाबले करीब १० गुना अधिक व्यवसाय कर रहे हैं। सतीश ने बताया कि गुजरात में गोयल एंड कंपनी के संदीप भाई गोयल ने उनका बिजनेस स्थापित कराने में खासी मदद की।
साथ ही स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई भी जारी रखी। शुरुआत में सतीश को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ीं। गुजरात के व्यापारी भी सतीश की कच्ची उम्र को देखकर उसे कम आंक रहे थे, लेकिन सतीश कड़ी मेहनत और मजबूत इरादों के साथ व्यवसाय की दुनिया में खासा नाम कमाकर खुद को साबित कर इसकी बुलंदियों को छूआ। आज मार्बल पॉलिसिंग की टॉप-१० कंपनियों में सतीश की धाक है। आज के दौर में सतीश व्यास अपने पिता के मुकाबले करीब १० गुना अधिक व्यवसाय कर रहे हैं। सतीश ने बताया कि गुजरात में गोयल एंड कंपनी के संदीप भाई गोयल ने उनका बिजनेस स्थापित कराने में खासी मदद की।
पिता के नाम को समर्पित होटल…
सतीश की करौली में प्रकाश होटल है। उनका मकसद इसके जरिए अपने पिता के नाम को जिंदा रखना है। सतीश कहते हैं कि यह होटल व्यवसाय के लिए नहीं होकर सेवा के लिए है, जिससे हमारे पिता का नाम अमिट रहे। इसके अलावा भी उनके अन्य कारोबार हैं।
सतीश की करौली में प्रकाश होटल है। उनका मकसद इसके जरिए अपने पिता के नाम को जिंदा रखना है। सतीश कहते हैं कि यह होटल व्यवसाय के लिए नहीं होकर सेवा के लिए है, जिससे हमारे पिता का नाम अमिट रहे। इसके अलावा भी उनके अन्य कारोबार हैं।
धार्मिक ग्रंथों ने दी सीख…
ठोस इरादों के बलबूते पाया मुकाम
युवा व्यवसायी सतीश बताते हैं कि मैंने धार्मिक ग्रंथों से बहुत कुछ सीखा है। महाभारत और रामायण से मैंने विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने की सीख ली। वे बताते हैं कि यहां तक पहुंचने की राह कतई आसान नहीं थी। पारिवारिक विवाद, रंजिशें और घर का बंटवारा आदि ने उन्हें खूब तोडऩे की कोशिश की। झूठे मुकदमे भी झेले, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
ठोस इरादों के बलबूते पाया मुकाम
युवा व्यवसायी सतीश बताते हैं कि मैंने धार्मिक ग्रंथों से बहुत कुछ सीखा है। महाभारत और रामायण से मैंने विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने की सीख ली। वे बताते हैं कि यहां तक पहुंचने की राह कतई आसान नहीं थी। पारिवारिक विवाद, रंजिशें और घर का बंटवारा आदि ने उन्हें खूब तोडऩे की कोशिश की। झूठे मुकदमे भी झेले, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
पारिवारिक विवाद का भी शांति से हल हुआ। विपरीत परिस्थितियों में डटे रहने के कारण बिजनेस में नया मुकाम हासिल किया। सतीश कहते हैं कि यदि व्यक्ति ठान ले तो दुनिया में कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। उनका यह भी कहना है कि युवाओं को सरकारी नौकरी का मोह त्याग कर अपने मेहनत पर भरोसा करके खुद का व्यवसाय करना चाहिए।