दीक्षा स्थल पर ओघा मिलने और आभूषणों के त्याग के बाद महोत्सव स्थल से दीक्षार्थी को विवेकानंद पार्क के पास पदमचंद जैन के आवास पर ले जाया गया। वहां साध्वी धैर्य निधि के सान्निध्य में परिजनों ने दीक्षार्थी को केसर आदि से अंतिम स्नान कराया। उसके बाद उन्होंने अपने सांसारिक वस्त्रों को भी त्याग दिया। वहां से वे साध्वी वस्त्रों में महोत्सव स्थल पहुंची। वहां उनकी एक झलक के लिएलोग आतुर हुए और दीक्षार्थी के जयकारे गूंजे। लोगों ने अक्षत डालकर उनकी अनुमोदना की। लोगों के साथ जैन मुनि और साध्वियों ने भी उन पर अक्षत वर्षा कर आशीर्वाद दिया।
जैन मुनि धैर्यसुंदर विजय की पहली दीक्षार्थी बनीं अमिता को उन्होंने नया नाम मंत्रनिधि दिया है। नामकरण से पहले विधि विधान से मंत्रनिधि को दिनचर्या के आवश्यक उपकरण कामली, दांडा, पौथी, चरबला, दंडासन, पूजणी, संथारा, मुंहपट्टी, पातरा, वस्त्र आदि प्रदान किए गए। इन उपकरणों को साध्वी को प्रदान करने से पहले पांडाल में इनकी बोली भी लगाई गई, इसमें श्रावक-श्राविकाओं ने उत्साह दिखाया।
महोत्सव स्थल पर जब साध्वी की केश लोच हुए तो एक बारगी पांडाल में सन्नाटा छा गया और लोग भावुक हो गए। केश लोच साध्वी धैर्य निधि ने साध्वी बनी मंत्रनिधि की मां को प्रदान किए। महोत्सव में एसडीओ शेरसिंह लुहाडिय़ा, थानाप्रभारी आध्यात्म गौतम, नगर परिषद सभापति अरविंद जैन विशेष रूप से उपस्थित रहे। इन सभी का श्री जैन श्वेतांबर पल्लीवाल सकल संघ के पदाधिकारियों ने बहुमान किया। महोत्सव का संचालन चेन्नई से आए मोहनभाई व मनोज भाई ने भजनों की प्रस्तुति के साथ किया। जैन धर्मालंबियों के साथ शहर के अन्य समाजों के महिला-पुरूष भी काफी संख्या में उपस्थित थे। शहर में पहली बार हुए दीक्षा महोत्सव को देख सभी अभिभूत हो गए।
…और जैन उपाश्रय के लिए किया विहार
दीक्षा महोत्सव के समापन के बाद साध्वी मंत्रनिधि अपनी गुरु साध्वी धैर्यनिधि के साथ मोहननगर के जैन उपाश्रय के लिए विहार कर गईं।
दीक्षा महोत्सव के समापन के बाद साध्वी मंत्रनिधि अपनी गुरु साध्वी धैर्यनिधि के साथ मोहननगर के जैन उपाश्रय के लिए विहार कर गईं।