पूरे बीस वर्ष हो गए हीरासिंह की शहादत को। घर की दीवारों पर सेना की वर्दी में टंगी तस्वीरें आज भी उन क्षणों की याद को ताजा कर देती हंै। मुकंदपुरा गांव में तलाई के पास लोगों का सैलाब, मुख्यमंत्री से लेकर स्थानीय नेताओं का जमावड़ा और जब तक सूरज चांद रहेगा, हीरासिंह तेरा नाम रहेगा के गगनभेदी नारों के बीच तिरंगे में लिपटी पार्थिव देह। वो दृश्य आज भी वीरांगना उर्मिला देवी की नम आंखों में नजर आता है। 21 जून 1999 को करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए मुकंदपुरा गांव निवासी हीरासिंह जाट बलिदान हो गए।
शहादत से चार माह पहले बेटे की जन्म की सूचना पर हीरा छुट्टी में घर आया था। ड्यूटी पर लौटने के कुछ दिन बाद ही हीरासिंह की करगिल में सरहदी मोर्चे पर तैनाती हो गई। कुछ माह बाद हीरासिंह की पार्थिव देह तिरंगे में लिपट कर गांव में आई। सात माह का बेटा चन्द्रशेखर जो अभी धरती पर कदम रखना सीख रहा था, ने परिजनों की गोद से शहीद पिता को मुखाग्निी दी। राज्य सरकार ने हीरासिंह की शहादत को चिर स्मरणीय बनाने के लिए मुकंदपुरा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय का नामकरण शहीद के नाम कर दिया। यह विद्यालय अब माध्यमिक स्तर में क्रमोन्नत हो चुका है।
10-10 को किया ढेर, फिर खुद हुआ शहीद-
उस अकेले जाबांज ने दस-दस को मार गिराया। फिर खुद शहीद हो गया। हिण्डौन के मुकंदपुरा गांव के जाबांज हीरासिंह जाट की वीर गाथा में यह अंकित है। करगिल की पहाडिय़ों को दुश्मन से मुक्त कराने के लिए 4-जाट रेजीमेंट की टोली में शामिल हीरसिंह जाट टोली में से आगे बढ़ घुसपैठियों से भिड़ गया था। उसने पहले तो अपने साथियों के साथ टाइगर हिल पर चौकी को तबाह कर डाला था। फिर इसी जोश में आगे बढ़ते हुए 10 से अधिक घुसपैठियों को गोलियों से ढेर किया। जोश में वह भूल गया कि अकेले ही आगे बढ़ा चला आया है। इसी बीच खुद हीरासिंह भी देश की रक्षा में बलिदान हुआ। दो दशक पहले करगिल सेक्टर में इसी टाइगर हिल्स पर भारतीय सेना ने तिरंगा फहराया था। ऑपेरशन करगिल विजय अभियान में मुकंदपुरा गांव के सपूत की शहादत अमिट हो गई हैं।
दूसरी पहाड़ी पर जांबाजी दिखा रहा था बड़ा भाई-
करगिल ऑपरेशन में हीरासिंह का बड़ा भाई भूपनसिंह 8-जाट रेजीमेंट की टोली में शामिल था। जब टाइगर हिल पर हीरा जंग कर रहा था तब भूपनसिंह नंगी टेकरी हिल्स से फायरिंग कर रहे थे। भूपन ने बताया कि हीरासिंह उनसे प्रेरित होकर सेना में भर्ती हुआ था।
पिता शहादत का मिलता दुलार-
शहीद के पुत्र चंद्रशेखर ने बताया कि होश संभाला तो पिता दीवार के टंगी तस्वीरों में नजर आए। वीरांगना मां ने घर के सामने स्थित झण्डूकापुरा के राजकीय उप्रा विद्यालय में दाखिला करा दिया। कक्षा तीन में आने पर समझ बढ़ी और पिता के शहीद होने का पता चला। विद्यालय में शिक्षकों से लेकर सहपाठियों का शहीद के बेटा होने का दुलार और सम्मान का नजरिया रहा। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के समारोह में शहीदों के प्रति कृतघ्नता का महौल जहन में गर्व का संचार करता है, हां मैं शहीद को बेटा हूं, मेरे पिता देश के लिए बलिदान हो गए।