खास बात यह है कि खुलेआम कैम्परों में बिक रहे आरओ के पानी की विभागीय स्तर पर जांच की व्यवस्था नहीं है। इससे प्लांट संचालकों में किसी भी कार्रवाई का डर नहीं है। हालात यह है कि क्षेत्र में संचालित करीब डेढ़ दर्जन आरओ प्लांट में से एक भी प्लांट पंजीकृत नहीं हैं। जबकि खानपान की वस्तुओं के प्रोडक्शन से लेकर वितरण करने के लिए नियमानुसार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से अनुज्ञापत्र लेना होता है। पंजीयन नहीं होने की स्थिति में विभाग के खाद्य निरीक्षक व प्रशासन केे अधिकारी खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत इनके विरूद्व कार्रवाई कर सकतें हैं।
जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सूत्रों के अनुसार जल प्राकृतिक संपदा है और इसका दोहन नहीं किया जा सकता। नियमानुसार पंजीयन के बाद बोतल बंद पानी को बाजार में बेचा जा सकता है। लेकिन आरओ प्लांट संचालकों ने पानी के लिए अवैध नलकूप खोद रखें हैं। जहां प्रतिदिन हजारों लीटर पानी का कारोबार कर लाखों रुपए कमा रहे हैं। क्षेत्र में भूजल स्तर की स्थिति भी चिंताजनक है। आरओ प्लांट भी भूगर्भीय जल पर आधारित है। ऐसे में पानी की रासायनिक शुद्धता की जांच अति आवश्यक है। सूत्रों की मानें तो इन प्लांटों में (रिवर्स ऑस्मोसिस) आरओ मशीन भी हल्के स्तर की लगाई जाती है।
इस प्रकार है पानी में रसायनों की मात्रा
जलदाय विभाग के अनुसार क्षेत्र के भूजल में टीडीएस व फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक है। शहरी क्षेत्र के भूजल में टीडीएस २५०० से ३००० पीपीएम है वहीं ग्रामीण क्षेत्र में इसकी मात्रा ५००० से ८००० पीपीएम है। जबकि ५०० पीपीएम टीडीएस वाले पानी को ही पीने योग्य माना गया है।