पांच टाइगरों की दहाड़ से गूंजा कैलादेवी का अभ्यारण्य, भालू और भेडिया भी काफी तादाद में नजर आ रहे
करौलीPublished: Oct 01, 2018 05:52:12 pm
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पांच टाइगरों की दहाड़ से गूंजा कैलादेवी का अभ्यारण्य, भालू और भेडिया भी काफी तादाद में नजर आ रहे
करौली. कैलादेवी वन्य जीव अभ्यारण्य स्थायी तौर पर पांच टाइगरों की दहाड़ से गूंज उठा है। इसके अलावा भेडिय़ा और भालू की चहलकदमी ने भी अभ्यारण्य में चार चांद लगा दिए हैं। कैलादेवी अभ्यारण की स्थापना १९८३ में की गई। गत चार सालों से टाइगरों का आना-जाना शुरू हुआ। लेकिन अब गत महीनों से टाइगरों ने स्थायी तौर पर बसेरा कैलादेवी में बना लिया है। वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि टी-७२, टी ९२ कैलादेवी-करणपुर क्षेत्र में विचरण करते रहते हैं। इसी प्रकार दो शावक भी उनके साथ रहते हैं। जिससे शावकों की सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा नहीं है। एक टाइगर टी-८० सवाईमाधोपुर से कैलादेवी के डंगरा खो में विचरण करता है। वह सवाईमाधोपुुर तो कभी कैलादेवी आता-जाता रहता है। इस कारण पांच टाइगर कैलादेवी में एक साथ रहने लगे हैं।
भेडिया और भालुओं पर विशेष नजर
कैलादेवी अभ्यारण्य क्षेत्र में टाइगरों के अलावा भालू तथा भेडियों की तादाद बढ़ रही है। भेडियों की काफी संख्या होने से वन विभाग गद्गद् है। वन अधिकरियों ने बतायाा कि भेडिया इस क्षेत्र में सर्वाधिक है। जिन्हें देखने के लिए पर्यटक काफी संख्या में आएंगे। कैलादेवी की निभैरा खो, निभैरा खो तथा दौलतपुर में भेडिया विचरण करते हैं। भेडिया और भालुओं के लिए भोजन भी पर्याप्त मात्रा में है।
७७४ वर्ग स्कावयर वर्ग किलोमीटर में फैला है क्षेत्र
कैलादेवी अभ्यारण्य क्षेत्र की स्थापना १९८३ में हुई। जो कैलादेवी, करणपुर डांग क्षेत्र के अधिकतर वन क्षेत्र के अपने हिस्से में समेटे हुए हैं। इस क्षेत्र में ६२ गांव आते हैं। जिनका विस्थापन होना है। लेकिन वन विभाग ने अभी तक मात्र चार गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की है। जिसमें सफलता नहीं मिली है। अधिकारियों का कहना है कि समय पर बजट नहीं मिलने तथा ग्रामीणों की जागरुकता के अभाव में विस्थापन का काम मंद गति से हो रहा है। विस्थापन के अभाव में ग्रामीण तथा पशुओं की चहलकदमी से वन्य जीवों को विचरण में परेशानी भी होती है।
पर्यटन का विकास भी होगा
पांच टाइगर स्थायी तौर पर अभ्यारण्य में रहने लगे हैं। जिससे पर्यटकों के आने की संभावना है। अभ्यारण्य का विकास तेजी से हो रहा है।
सुरेश मिश्रा सहायक वन अधिकारी करौली