scriptतब चिडिय़ा कहने पर कतर देते थे पर, जुल्म और सितम की ऐसी थी वो दास्तां | Untold Story Of Freedom Fighter | Patrika News

तब चिडिय़ा कहने पर कतर देते थे पर, जुल्म और सितम की ऐसी थी वो दास्तां

locationकरौलीPublished: Aug 15, 2018 01:20:24 pm

Submitted by:

dinesh

अंग्रेजी हुकूमत का फरमान ही सब कुछ था। गलत-सही का आंकलन करना, तर्क करना भी जुर्म की श्रेणी में शुमार था…

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करौली। जुल्म और सितम की वो दास्तां शायद कभी कोई सुनना या देखना नहीं चाहेगा। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सांसों पर भी एक तरह से पहरा ही था। अंग्रेजी हुकूमत के समय एक शख्स ने इतना भर कह दिया था कि ‘यह राजा क्या चिडिय़ा होते हैं’ तो उन्हें दो माह तक सलाखों के पीछे धकेल दिया गया था। पूर्वजों के खून से लिखे आजादी के इस इतिहास की कीमत नई पीढ़ी को समझनी चाहिए। साथ ही इसका मान बढ़ाने के लिए राष्ट्र हित की भावना प्रत्येक के मन में पैदा होनी चाहिए। यह कहना है 95 वर्षीय परशुराम शर्मा एडवोकेट का जो करौली नगरपलिका के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आजादी से पहले के जमाने का जिक्र ही उन्हें बेचैन कर डालता है।

शर्मा बताते हैं कि वह जमाना बेगार कराने का था। कोई भी व्यक्ति उस समय खुलकर अपनी बात नहीं कह सकता था। अंग्रेजी हुकूमत का फरमान ही सब कुछ था। गलत-सही का आंकलन करना, तर्क करना भी जुर्म की श्रेणी में शुमार था। राजशाही जमाने में लगने वाले दरबार लोगों की तकदीर का फैसला करने वाले होते थे। शर्मा ने बताया कि यूं तो आजादी हमें 15 अगस्त 1947 को मिल गई, लेकिन लोकतंत्र की तमाम प्रक्रियाओं के पूरे होने तक गुलामी का साया बरकरार रहा। मत्स्य प्रदेश तक गुलामी के कुछ अंश देखे गए। बाद में रफ्ता-रफ्ता लोकतंत्र का राज आया। राजशाही का अंत होने पर ही लोग असल मायने में आजादी का मतलब समझ सके। राजाओं का दबदबा भी ऐसा था कि लोग चूं कहने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
शर्मा ने आज की आजादी को बेहतर बताया, लेकिन साथ ही इस आजादी के बहाने कुछ भी बोल देने की विचारधारा को ठीक नहीं ठहराते हुए देश में नासूर बन रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की वकालत भी की। भरतपुर में देखी आजादी की झलक शर्मा बताते हैं कि जहां राजशाही जमाने में लोगों को जुबान खोलने तक का हक नहीं था। वहीं लोकतंत्र में इसकी बानगी तब देखने को मिली जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भरतपुर आईं थीं। यहां सिंधी समाज की कुछ महिलाओं ने गांधी को भाषण नहीं देने दिया और शोर-शराबा किया। इसके बाद वह मंच से नीचे आईं और उनकी बात को पूरी तवज्जो के साथ सुनने पर उनकी हर बात को शिरोधार्य किया। 18 वार्डों के बने चेयरमैन वयोवृद्ध परशुराम शर्मा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाई गई इमरजेंसी के ठीक बाद करौली के निर्विरोध चेयरमैन चुने गए। उस समय शहर में महज 18 वार्ड थे। यह चुनाव वर्ष 1976 में हुए, जिन्हें शर्मा को सर्वसम्मति से निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। इससे पहले वह सन् 1958 में नगरपालिका के मेम्बर भी रहे। उन्हें रियासतकाल में वकालत का पट्टा भी मिला।
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