बॉलीवाल-बैडमिंटन, कुश्ती, सॉफ्टबॉल, एथलेक्टिस आदि के लिए तो कोई कोच है ही नहीं। खेलों के कोच नहीं हो पाने के कारण खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। ऐसे में खेलों के बूते आगे बढऩे की ललक रखने वाले खिलाड़ी मन मसोसकर ही रह जाते हैं। वहीं प्रशिक्षण के अभाव में कई खिलाड़ी तो प्रतियोगिताओं में भाग ही नहीं ले पाते हैं। हालांकि हाल ही में जिला खेल विभाग की ओर से स्पोर्टस कांससलिंग को बॉलीवाल कुश्ती, सॉफ्टबॉल, एथलेक्टिस, हैण्डबॉल आदि खेलों के लिए कोच लगाने की दरकार जताते हुए पत्र भेजा गया है।
जिला मुख्यालय पर हॉकी-हैण्डबॉल खेलों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। हालांकि कबड्डी के अलावा जिले में अन्य कोई खेल एकेडमी नहीं है। यहां हॉकी, हैण्डबॉल के भी स्थायी कोच नहीं है। ऐस में इन खेलों के प्रशिक्षण के लिए भी प्लेसमेंट एजेंसी के प्रशिक्षकों से काम चलाया जा रहा है। वे नियमित रूप से नहीं रहते। प्लेसमेंट एजेंसी के कार्य की अवधि पूरी होते ही ये प्रशिक्षक भी चले जाते हैं। इससे कई-कई माह से इन खेलों के खिलाडिय़ों को खेलों का प्रशिक्षण लेने से वंचित रहना पड़ जाता है।
करौली में वर्ष 2011 में कबड्डी अकेडमी की सौगात मिली थी। इससे यहां कबड्डी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद थी। अकेडमी का संचालन मुंशी त्रिलोकचन्द माथुर स्टेडियम में शुरू किया गया। इससे खिलाडिय़ों को कबड्डी की बारिकियां सीखने का अवसर भी मिला। करौली जिला ही नहीं प्रदेश के विभिन्न जिलों के कबड्डी खिलाडिय़ों का प्रतिवर्ष यहां अकेडमी में दाखिला होता रहा है।
कबड्डी अकेडमी सहित अन्य खेलों के कोच नहीं है। कबड्डी अकेडमी में पार्टटाइम कोच लगाया हुआ है। इसके अलावा आवश्यकतानुसार अन्य स्थानों से कोच बुला लेते हैं। हालांकि रेगुलर कोच हो तो सुविधा मिल सकती है।
सत्यप्रकाश लुहाच, कार्यवाहक जिला खेल अधिकारी, करौली