script‘जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए’ | Do something, live like a corpse if you live, what do you live' | Patrika News

‘जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए’

locationकरनालPublished: May 29, 2020 07:14:36 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

‘है जान के साथ काम इंसा के लिए बनती नहीं है जिन्दगी में, बेकाम किये जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए’विद्यावन्ति उम्र के लगभग सौवें पड़ाव में जिन्दगी जीने का यह फलसफा सीखा रही है। सीखा रही है कि फर्ज अदा करने में साधन और उम्र आड़े नहीं आती।

'जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए'

‘जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए’

करनाल(हरियाणा):

‘है जान के साथ काम इंसा के लिए
बनती नहीं है जिन्दगी में, बेकाम किये
जीतो हो कुछ कीजिए जिंदों की तरह
मुर्दों की तरह जिए तो क्या खाक जिए’
विद्यावन्ति उम्र के लगभग सौवें पड़ाव में जिन्दगी जीने का यह फलसफा सीखा रही है। सीखा रही है कि फर्ज अदा करने में साधन और उम्र आड़े नहीं आती। कांपते हाथों और बूढ़ी आंखों की मंद रोशनी से जब उसके हाथ मशीन पर चलते हैं तो लगता है कि कोरोना से जंग में जीतना ही लक्ष्य है।

मशीन पर थिरकती हैं बूढ़ी उंगलियां
कोरोना और लॉकडाउन के इस दौर में जहां मॉस्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही बचाव है, वहीं जरूरतमंदों को निशुल्क मॉस्क मुहैया कराने में ९२ साल की विद्यावन्ति पूरी शिद्दत से जुटी हुई है। मशीन पर उसका जोश किसी युवा से कम नजर नहीं आता। अपनी ७६ साल पुरानी मशीन पर भी विद्यावन्ति की उंगलियां उसी रफ्तार से चलती हैं, जैसे परिवार के अन्य सदस्यों की। वह सभी के साथ हर दिन मॉस्क की सिलाई का काम करती है।

तीसरा भयावह दौर देखा
यह बुजुर्ग महिला और उसका परिवार विगत करीब पन्द्रह दिनों अब सैकड़ों मॉस्क बना कर जरूरतमंदों में बांट चुका है। दूसरे के दर्द को शायद वही बेहतर समझ सकता है जिसने उस दर्द को जीवन में दरिया की तरह पीया हो। यह वही दर्द है जिसमें विद्यावन्ति को इस उम्र में भी सिलाई मशीन पर उंगलियां चलाने के विवश कर दिया। विद्यावन्ति ने अपनी अब तक की उम्र में यह तीसरा सबसे बुरा दौर देखा है, जब लाखों गरीबों पर लॉक डाउन का सितम कहर बरपा रहा है। इससे पहले विद्यावन्ति ने पहले प्लेग और उसके बाद भारत-पाक विभाजन का दर्दनाक दौर देखा था।

सिलाई में था नाम
विद्यावन्ति कहती हैं कि वे अपनी दौर की बेहतर टेलर रही हैं। सिलाई में दूर-दूर तक उनका नाम कायम था। इसी से उन्हें इस उम्र में गरीबों को निशुल्क मॉस्क बनाने की सूझी। परिवार ने भी उनका साथ दिया। वह कहती हैं कि कोरोना से बचाव के लिए मॉस्क आवश्यक है। सभी मॉस्क नहीं खरीद सकते। ऐसे में जितना भी हो सके उनका पूरा परिवार मॉस्क बना कर जरूरतमंदों में बांटता है। वो अपने बेटे कृष्ण गोपाल वत्स के माध्यम से आज सैकड़ों मास्क लोगों को बांट रही हैं। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि लोग अपने घरों में रहे और सरकार के नियमों का पालन करें।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो