पूर्व प्रधानमंत्री स्व.देवीलाल से लेकर राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले भजनलाल भी राजनीतिक अखाड़े में मात खा गए थे। संयुक्त पंजाब में तीन बार मुख्यमंत्री रहे गोपीचंद भार्गव ऐसे नेता हैं जिन्होंने पंजाब में तो अपनी राजनीतिक दक्षता का लोहा मनवाया लेकिन हरियाणा जब राजनीतिक पारी खेलनी शुरू की यहां के मतदाताओं ने उन्हें अस्वीकार कर दिया और हरियाणा से विधानसभा में पहुंचने का उनका सपना अधूरा रह गया।
गोपीचंद भार्गव का जन्म संयुक्त पंजाब के हिसार जिले में 1889 में हुआ था। 1913 लाहौर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद चिकित्सा का कार्य शुरू किया। वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग की घटना से वह राजनीति में आए। आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने पर उन्हें 1921, 1923, 1930, 1940 व 1942 में जेल काटनी पड़ी। इस दौरान वे कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वर्ष 1946 में पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए। देश के आजाद होने के बाद वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गोपीचंद भार्गव को संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई थी। वह पहले कार्यकाल में करीब दो साल मुख्यमंत्री रहे।
वर्ष 1951 में कांग्रेस से अलग होकर पंजाब के पहले मुख्यमंत्री गोपीचंद भार्गव ने थानेसर व बुटाना विधानसभा से एक साथ चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें दोनों जगह से करारी हार का सामना करना पड़ा। एक विधानसभा में वे सातवें स्थान पर रहे तो एक में वे चौथे स्थान पर रहे।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1951 में थानेसर विधानसभा से बनारसी दास गुप्ता 9267 वोट लेकर विधायक बने, जबकि किशन राम 5318 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। मगर गोपीचंद भार्गव को मात्र 1240 वोट ही मिले। इसके साथ ही बुटाना विधानसभा क्षेत्र में गोपीचंद भार्गव को निराशा ही झेलनी पड़ी। यहां से रामस्वरूप 27619 वोट लेकर विधायक बने जबकि गोपीचंद 6348 वोटों के साथ सातवें स्थान पर रहे। गोपीचंद भार्गव ने लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के अनुरोध पर पंजाब के मुख्यमंत्री का पद स्वीकारा था। वे पहली बार 15 अगस्त 1947 से 13 अप्रैल 1949 तक मुख्यमंत्री रहे। दूसरी बार वह 18 अक्तूबर 1449 से लेकर 20 जून 1951 तक मुख्यमंत्री रहे। तीसरी बार 21 जून 1964 से 6 जुलाई 1964 तक संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 26 दिसंबर 1966 को उनका निधन हो गया।