इससे पहले हुड्डा ने जब भी फैसला लेने के लिए बैठकों का आयोजन किया है तब ऐन मौके पर हाईकमान के दूत हुड्डा के पास आकर उन्हें सबकुछ ठीक होने का भरोसा देकर शांत करते रहे हैं लेकिन कार्यकर्ताओं व नेताओं के दबाव के आगे अब हुड्डा हाईकमान की तरफ से दिए जाने वाले दिलासे को दरकिनार करेंगे।
हरियाणा में यह कोई पहला मामला नहीं है। वर्ष 1966 में हरियाणा गठन से लेकर आजतक कांग्रेस हाईकमान को कई बार परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा लेकिन हाईकमान कभी भी दबाव बनाने वाले नेताओं के आगे नहीं झुकी। पंजाब से अलग होने के बाद एक नवंबर 1966 को कांग्रेस पार्टी ने भगवत दयाल शर्मा को हरियाणा का पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया था। भगवत दयाल सरकार में ही स्पीकर बने राव बीरेंद्र सिंह ने कुछ समय बाद बगावत का झंडा उठा लिया। स्वर्गीय राव बीरेंद्र सिंह ने हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए विधायकों को भी तोड़ा लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनकी एक नहीं सुनी।
इसके बाद उन्होंने हरियाणा विशाल पार्टी का गठन किया और सत्ता में आ गए। कुछ समय बाद हरियाणा विशाल पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने लंबे समय तक गांधी परिवार के करीबी रहे स्वर्गीय बंशीलाल के दावों को खारिज करते हुए जब भजनलाल को हरियाणा की राजनीति में उभारना शुरू किया तो बंशीलाल ने कांग्रेस से बगावत करते हुए 1996 में हरियाणा विकास पार्टी का गठन कर डाला और सत्ता में आ गए। बंशीलाल हरियाणा की राजनीति में कुछ समय ही अकेले चले और उसके बाद उन्होंने भी अपनी पार्टी का दोबारा कांग्रेस में विलय कर लिया।
बंशीलाल के बाद हरियाणा में कांग्रेस की तरफ से बगावत का झंडा उठाया पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजनलाल ने। वर्ष 2005 में कांग्रेस ने भजनलाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और पूर्ण बहुमत में आ गई लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने का समय आया तो सोनिया गांधी ने ऐन मौके पर भजनलाल को एक तरफ करके हरियाणा की बागडोर हुड्डा के हाथ में सौंप दी। जिससे गुस्साए भजनलाल ने पहले तो कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाया लेकिन जब दबाव काम नहीं आया तो 2007 में उन्होंने हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) का गठन कर दिया। हजकां हरियाणा में कोई करिश्मा नहीं कर पाई और भजनलाल की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने हजकां का कांग्रेस में विलय कर लिया।