एक दिन वो फिर आया और कहने लगा, “अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मुझे मेरा अपना घर बनाना है, इसके लिए मेरे पास अब पैसे नहीं है।”
आम के पेड ने कहा, “तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा, उससे अपना घर बना ले।” उस जवान ने पेड़ की सभी डाली काट लीं और ले के चला गया।
आम के पेड़ के पास अब कुछ नहीं था। वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था। कोई उसे देखता भी नहीं था। पेड़ ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा, यह उम्मीद छोड़ दी थी। फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बूढ़ा आदमी आया। उसने आम के पेड़ से कहा, “शायद आपने मुझे नहीं पहचाना, मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।”
वृद्ध ने आंखों में आंसू लिए कहा, “आज मै आपसे कुछ लेने नहीं आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है, आपकी गोद में सर रखकर सो जाना है।” इतना कहकर वो आम के पेड़ से लिपट गया और आम के पेड़ की सूखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, सोरों