अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा। भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया। कीड़े ने परागरस पिया। मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढ़ा दिया। कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुए। चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला। संध्या में पुजारी ने सारे फूल एकत्रित किये और गंगा जी में छोड़ दिए। कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था। इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया। पूछा- मित्र, क्या हाल हैं? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है।
सीख
संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए,
लोहा लगा जहाज में, पानी में उतराय। प्रस्तुतिः डॉ. राधा कृष्ण दीक्षित प्राध्यापक, केए कॉलेज, कासगंज
संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए,
लोहा लगा जहाज में, पानी में उतराय। प्रस्तुतिः डॉ. राधा कृष्ण दीक्षित प्राध्यापक, केए कॉलेज, कासगंज