सीख
यही मैं तुमसे कहता हूं : और आगे, और आगे। चलते ही जाना है। उस समय तक मत रुकना जब तक कि सारे अनुभव शांत न हो जाएं। परमात्मा का अनुभव भी जब तक होता रहे, समझना दुई मौजूद है, द्वैत मौजूद है, देखने वाला और दृश्य मौजूद है। जब वह अनुभव भी चला जाता है तब निर्विकल्प समाधि। तब सिर्फ दृश्य नहीं बचा, न दृष्टा बचा, कोई भी नहीं बचा। एक सन्नाटा है, एक शून्य है। और उस शून्य में जलता है बोध का दीया। बस बोधमात्र, चिन्मात्र। वही परम है। वही परम-दशा है, वही समाधि है।
यही मैं तुमसे कहता हूं : और आगे, और आगे। चलते ही जाना है। उस समय तक मत रुकना जब तक कि सारे अनुभव शांत न हो जाएं। परमात्मा का अनुभव भी जब तक होता रहे, समझना दुई मौजूद है, द्वैत मौजूद है, देखने वाला और दृश्य मौजूद है। जब वह अनुभव भी चला जाता है तब निर्विकल्प समाधि। तब सिर्फ दृश्य नहीं बचा, न दृष्टा बचा, कोई भी नहीं बचा। एक सन्नाटा है, एक शून्य है। और उस शून्य में जलता है बोध का दीया। बस बोधमात्र, चिन्मात्र। वही परम है। वही परम-दशा है, वही समाधि है।
प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, केए कॉलेज, कासगंज