राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कल तक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।
पशुपालक बोला – मेरे पास पारस है, उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे। बस, पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।
राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के पशुपालक का चेला बनूं? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।
पशुपालक बोला – पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी। मैं दूध नहीं पीऊंगा।
तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा – पशुपालक बोला।
राज पंडित बोला – ठीक है, दूध पीने को तैयार हूं, आगे क्या करना है?
पशुपालक बोला- अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।
राजपंडित ने कहा – तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?
राज पंडित बोला – मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को।
पशुपालक बोला- वह बात गयी। अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा, उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा। तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।
राजपंडित ने खूब विचार कर कहा- है तो बड़ा कठिन, लेकिन मैं तैयार हूं।
पशुपालक बोला- मिल गया जवाब। यही तो कुआं है! लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।