उसने कहा, “नस्ली नही हैं ।” राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा। उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो है, पर इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पीकर उसके साथ पला बढ़ा है।
फिर उसे रानी के महल में तैनात कर दिया। चंद दिनों बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी। उसने कहा, “तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।” राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया। मामला उसको बताया। सास ने कहा “हक़ीक़त ये है, कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी छह माह में ही मर गई थी। लिहाज़ा हमने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।”
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा “तुम को कैसे पता चला ?” उसने कहा, ” रानी साहिबा का नौकरों के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा हैं। एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही। राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और बहुत से अनाज, भेड़, बकरियां बतौर इनाम दीं। साथ ही उसे अपने दरबार में तैनात कर लिया।
कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर नौकर को बुलाया और अपने बारे में पूछा। नौकर ने कहा “जान की सलामती हो तो कहूँ।” राजा ने वादा किया।
उसने कहा, “न तो आप राजा के बेटे हो और न ही आपका चलन राजाओं वाला है।” राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था, राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा। मां ने कहा, “ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हें गोद लेकर हमने पाला।”
राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , बता, “तुझे कैसे पता चला ?”
उसने कहा ” जब राजा किसी को “इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं। ये रवैया किसी राजा का नहीं, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।”
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा है। इंसान की असलियत की पहचान उसके व्यवहार और उसकी नीयत से होती है। हैसियत कुछ भी हो, पर सोच नहीं बदलती।