”तब तो भोजन लाने वाला आसपास कहीं छिपा होगा। पहले उसे तलाशा जाए।“ सरदार ने आदेश दिया।
डाकू इधर उधर बिखरने लगे, तब तक एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ गई। उसने सरदार को बताया।
सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं। उसने घुड़क कर कहा, ”अरे दुष्ट! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है। चल नीचे उतर।“
सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गया, मगर उतरा नहीं। वहीं से बोला, ”व्यर्थ दोष क्यों मढ़ते हो? भोजन में विष नहीं है।“
”यह झूठा है।“ सरदार के एक साथी ने कहा, ”पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ, झूठ सच का पता अभी चल जाता है।“
आनन फानन में तीन चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखाकर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया। मलूकदास ने भोजन कर लिया। फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया। डाकुओें ने उन्हें छोड़ दिया। इस घटना के बाद वे पक्के भक्त हो गए।
गांव पहुंचकर मलूकदास ने सर्वप्रथम जिस दोहे की रचना की, वह आज भी प्रसिद्ध है-
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम,
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।
डाकू इधर उधर बिखरने लगे, तब तक एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ गई। उसने सरदार को बताया।
सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं। उसने घुड़क कर कहा, ”अरे दुष्ट! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है। चल नीचे उतर।“
सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गया, मगर उतरा नहीं। वहीं से बोला, ”व्यर्थ दोष क्यों मढ़ते हो? भोजन में विष नहीं है।“
”यह झूठा है।“ सरदार के एक साथी ने कहा, ”पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ, झूठ सच का पता अभी चल जाता है।“
आनन फानन में तीन चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखाकर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया। मलूकदास ने भोजन कर लिया। फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया। डाकुओें ने उन्हें छोड़ दिया। इस घटना के बाद वे पक्के भक्त हो गए।
गांव पहुंचकर मलूकदास ने सर्वप्रथम जिस दोहे की रचना की, वह आज भी प्रसिद्ध है-
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम,
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।
प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, सोरों