कासगंज

अजगर करै न चाकरी पंछी करै न काम… पढ़िए मलूकदास की रोचक कहानी

प्रसिद्ध कवि मलूकदास शुरू में नास्तिक थे। फिर उन्हें ज्ञान हुआ कि भगवान कैसे मदद करते हैं। उनका प्रसिद्ध दोहा आज भी लोकप्रिय है- अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम,दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।

कासगंजMar 27, 2019 / 06:24 am

Bhanu Pratap

devaki nandan thakur

शुरू में संत मलूकदास नास्तिक थे। उन्हीं दिनों की बात है, उनके गांव में एक साधु आकर टिक गया। प्रतिदिन सुबह सुबह गांव वाले साधु का दर्शन करते और उनसे रामायण सुनते। एक दिन मलूकदास भी पहुंचे। उस समय साधु ग्रामीणों को राम की महिमा बता रहा था- राम दुनिया के सबसे बड़े दाता हैं। वे भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय देते हैं।

साधु की बात मलूकदास के पल्ले नहीं पड़ी। उन्होंने तर्क दिया, ”क्षमा करें महात्मन! यदि मैं चुपचाप बैठकर राम का नाम लूं, काम नहीं करूं, तब भी क्या राम भोजन देंगे?“
”अवश्य देंगे।“ साधु ने विश्वास दिलाया।
”यदि मैं घनघोर जंगल में अकेला बैठ जाऊं, तब?“
”तब भी राम भोजन देंगे।“ साधु ने उत्तर दिया।

बात मलूकदास को लग गई। पहुंच गए जंगल में और एक घने पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ गए। चारों तरफ ऊंचे पेड़ थे। कंटीली झाड़ियां थीं। जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ था। धीरे धीरे खिसकता हुआ सूर्य पश्चिम की पहाड़ियों के पीछे छुप गया। चारों तरफ अंधेरा फैल गया। सारी रात बैठे रहे। दूसरे दिन दूसरे पहर घोर सन्नाटे में मलूकदास को घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई पड़ी। वे सतर्क बैठ गए। थोड़ी देर में चमकदार पोशाकों में कुछ राजकीय अधिकारी उधर आते हुए दिखे, वे सभी पेड़ के नीचे घोड़ों से उतर पड़े, लेकिन ठीक उसी समय, जब एक अधिकारी थैले से भोजन का डिब्बा निकाल रहा था, शेर की भयंकर दहाड़ सुनाई दी। दहाड़ का सुनना था कि घोड़े बिदक कर भाग गए। अधिकारियों ने पहले तो स्तब्ध होकर एक दूसरे को देखा फिर भोजन छोड़कर वे भी भाग गए। मलूकदास पेड़ से यह सब देख रहा था। वह शेर की प्रतीक्षा करने लगा। मगर दहाड़ कर शेर दूसरी तरफ चला गया।

मलूकदास को लगा, राम ने उसकी सुन ली है, अन्यथा इस घोर जंगल में भोजन कैसे पहुंचता? मगर मलूकदास तो मलूकदास ठहरे! उतरकर भला भोजन क्यों करने लगे। तीसरे पहर के लगभग डाकुओें का एक दल उधर से गुजरा। पेड़ के नीचे चमकदार चांदी के बर्तनों में विभिन्न व्यंजनों के रूप में पड़े हुए भोजन को देखकर वे ठिठक गए। डाकुओं के सरदार ने कहा, ”भगवान की लीला देखो, हम लोग भूखे हैं और इस निर्जन वन में सुंदर डिब्बों में भोजन रखा है। आओ, पहले इससे निपट लें।“

डाकू स्वभावतः शक्की होते हैं, एक साथी ने सावधान किया, ”सरदार, इस सुनसान जंगल में भोजन का मिलना मुझे तो रहस्मय लग रहा है, कहीं इसमें विष न हो।“
”तब तो भोजन लाने वाला आसपास कहीं छिपा होगा। पहले उसे तलाशा जाए।“ सरदार ने आदेश दिया।
डाकू इधर उधर बिखरने लगे, तब तक एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ गई। उसने सरदार को बताया।

सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं। उसने घुड़क कर कहा, ”अरे दुष्ट! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है। चल नीचे उतर।“

सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गया, मगर उतरा नहीं। वहीं से बोला, ”व्यर्थ दोष क्यों मढ़ते हो? भोजन में विष नहीं है।“
”यह झूठा है।“ सरदार के एक साथी ने कहा, ”पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ, झूठ सच का पता अभी चल जाता है।“
आनन फानन में तीन चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखाकर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया। मलूकदास ने भोजन कर लिया। फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया। डाकुओें ने उन्हें छोड़ दिया। इस घटना के बाद वे पक्के भक्त हो गए।

गांव पहुंचकर मलूकदास ने सर्वप्रथम जिस दोहे की रचना की, वह आज भी प्रसिद्ध है-
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम,
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।
प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, सोरों

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